वो आया तो ऐसे आया ,
जैसे हो साँझ का कोई झुटपुट साया
हाथ से फिसला वही लम्हा ,
समझा था जिसे , जीने का सरमाया
हमने देखे हैं गुलाब महकते हुए भी ,
काँटों पे चल के , ये हमने क्या पाया
सजी हुई थी चाँद तारों की महफ़िल ,
फिर ये सानिहा सा क्यूँकर आया
दाँव पर दिल ही लगा ,हर बार ,
किसके पास कभी कोई ,सिर के बल आया
ज़िन्दगी धूप ही रही है , हमेशा
छाया की फितरत को कब टिकते पाया
जैसे हो साँझ का कोई झुटपुट साया
हाथ से फिसला वही लम्हा ,
समझा था जिसे , जीने का सरमाया
हमने देखे हैं गुलाब महकते हुए भी ,
काँटों पे चल के , ये हमने क्या पाया
सजी हुई थी चाँद तारों की महफ़िल ,
फिर ये सानिहा सा क्यूँकर आया
दाँव पर दिल ही लगा ,हर बार ,
किसके पास कभी कोई ,सिर के बल आया
ज़िन्दगी धूप ही रही है , हमेशा
छाया की फितरत को कब टिकते पाया