बरसों बाद पढ़े , तेरे खत फिर से
वही मौसम गुजरा है , इक बार इधर फिर से
वो जो धूप जमी थी, निगाहों के आस-पास
तेरे चेहरे पे झिलमिलाती हुई , दिखी है इधर फिर से
छोड़ आई थी जो पीछे , वो अल्हड़ सी जवानी
जागी हैं वही नादानियाँ , देखो तो इधर फिर से
रस्मों के सहारे से , महबूब बने तुम
मेरी दुनिया दिल से , चली है इधर फिर से
कौन जाने किसके खतों का , अन्जाम हो क्या
दफ़न हों सीने में या जी उट्ठे ,लम्हा-लम्हा इधर फिर से
दुनिया से छुपा कर , लिक्खा था जिन्हें
फूल बन कर खिले हैं वही , महके हैं इधर फिर से
वही मौसम गुजरा है , इक बार इधर फिर से
वो जो धूप जमी थी, निगाहों के आस-पास
तेरे चेहरे पे झिलमिलाती हुई , दिखी है इधर फिर से
छोड़ आई थी जो पीछे , वो अल्हड़ सी जवानी
जागी हैं वही नादानियाँ , देखो तो इधर फिर से
रस्मों के सहारे से , महबूब बने तुम
मेरी दुनिया दिल से , चली है इधर फिर से
कौन जाने किसके खतों का , अन्जाम हो क्या
दफ़न हों सीने में या जी उट्ठे ,लम्हा-लम्हा इधर फिर से
दुनिया से छुपा कर , लिक्खा था जिन्हें
फूल बन कर खिले हैं वही , महके हैं इधर फिर से