है अदब भी फासले का दूसरा नाम
होती है यूँ भी इबादत कभी-कभी
जंजीरों की तरह रोक लेतीं हैं जो
दीवारें भी बोलतीं हैं राहों की इबारत कभी-कभी
चुप हो के भले बैठे दिखते हैं जो
करते हैं वो भी बगावत कभी-कभी
है आसाँ नहीं हवाओं का रुख मोड़ना
करता है ज़मीर ही खिलाफत कभी-कभी
लिखता है भला कौन ज़ुदाई के नगमे
चुभती है ये भी हरारत कभी-कभी
चलता रहता है आदमी बिना सोचे-समझे
अटका तो समझ आती है वक़्त की नफ़ासत कभी-कभी
होती है यूँ भी इबादत कभी-कभी
जंजीरों की तरह रोक लेतीं हैं जो
दीवारें भी बोलतीं हैं राहों की इबारत कभी-कभी
चुप हो के भले बैठे दिखते हैं जो
करते हैं वो भी बगावत कभी-कभी
है आसाँ नहीं हवाओं का रुख मोड़ना
करता है ज़मीर ही खिलाफत कभी-कभी
लिखता है भला कौन ज़ुदाई के नगमे
चुभती है ये भी हरारत कभी-कभी
चलता रहता है आदमी बिना सोचे-समझे
अटका तो समझ आती है वक़्त की नफ़ासत कभी-कभी