तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए
हम तो बरसों-बरस अन्धेरे में रहे
साथ चलते हुए यूँ भी अक्सर
अजनबी भी बन जाते अपने
ये कैसे सफ़र पे हम तुम
दिन रात के फेरे से रहे
तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए
हम तो बरसों-बरस अँधेरे में रहे
दिल लगाया तो चोट खाई भी
दिल है बड़ा सयाना तो सौदाई भी
हाय अपने ही न हुए हम
गैर के खेमे में डेरे में रहे
तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए
हम तो बरसों-बरस अँधेरे में रहे
कौन चुनता है पग से काँटे
कौन बिछाता है राहों में फूल
ये किसी और ही दुनिया की बातें होंगी
हम जमीं पर इसी घेरे में रहे
तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए
हम तो बरसों-बरस अँधेरे में रहे
हम तो बरसों-बरस अन्धेरे में रहे
साथ चलते हुए यूँ भी अक्सर
अजनबी भी बन जाते अपने
ये कैसे सफ़र पे हम तुम
दिन रात के फेरे से रहे
तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए
हम तो बरसों-बरस अँधेरे में रहे
दिल लगाया तो चोट खाई भी
दिल है बड़ा सयाना तो सौदाई भी
हाय अपने ही न हुए हम
गैर के खेमे में डेरे में रहे
तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए
हम तो बरसों-बरस अँधेरे में रहे
कौन चुनता है पग से काँटे
कौन बिछाता है राहों में फूल
ये किसी और ही दुनिया की बातें होंगी
हम जमीं पर इसी घेरे में रहे
तुम मेरे हो के भी मेरे न हुए
हम तो बरसों-बरस अँधेरे में रहे