गुरुवार, 31 मार्च 2011

आशिक का ही मुहँ देखा किये

जिन्दगी भर आशिक का ही मुहँ देखा किये
शेरों और गजलों में हम जिन्दा रहे


हर कदम पर खाई थी रुसवाई थी
गिर गिर कर उठे हम डूबते उतराते रहे

जवाकुसुमों का अपना क्या रँग और क्या है महक
अपनी खुशबू से बेखबर उड़ते रहे खोते रहे


बेलों का अपना है क्या वजूद
तनों से लिपटे रहे सहारे को लड़खड़ाते रहे



उसके चेहरे का रँग ही सजता रहा
अपनी तन्हाईयों से हम घबराते रहे

जिन्दगी भर आशिक का ही मुहँ देखा किये
शेरों और गजलों में हम जिन्दा रहे



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शुक्रवार, 25 मार्च 2011

सिपह-सालार नहीं हिलता

गैर के खेमे में
अपना कोई वश नहीं चलता

हजार बातेँ हैं
दिल कहीं नहीं लगता

नन्हा कोई पौधा
मिट्टी की कोख में पलता

अच्छे होने की निशानी क्या है
साथ कोई नहीं चलता

साथ चलने से दब जाएगा वजूद
अना का कोई किनारा नहीं मिलता

इम्तिहान है ज़िन्दगी
नतीजा कुछ भी मिलता

हौसला है तो जँग जीती सी
इसी दम पे सिपह-सालार नहीं हिलता

बुधवार, 16 मार्च 2011

मनुवा की समझो बोली है

होली है होली है , रँगों की हमजोली है
ढोल नगाड़े मस्त बजाओ , मनुवा की समझो बोली है

टेसू फूले फागुन बोले , अमुवा के बौरों से खेले
रँगों की चादर ओढ़ाओ , ऋतुओं की आई डोली है

रँग गुलाल है होली का , और दुलार है गालों का
भीगा आँचल भीगा तन मन , भीगा लहँगा चोली है

हाथ रँगे है रँगा है जीवन , रस से देखो पगा है जीवन
एक दुकान है मीठे की , साली भी मुहँ-बोली है

देवर-भाभी साली-जीजा , रिश्ते-नाते प्यार भरे
सखी सहेली यार मिले , बात-बात में हँसी-ठिठोली है

गीत प्रीत की धुन पर नाचो , साँसों की सरगम पर नाचो
हाथ पकड़ कर दम भर नाचो , आई मस्तों की टोली है

होली है होली है , रँगों की हमजोली है
ढोल नगाड़े मस्त बजाओ , मनुवा की समझो बोली है

बुधवार, 2 मार्च 2011

ऐसे उठते हैं लोग दिलों से

ऐसे उठते हैं लोग दिलों से , जैसे कॉफ़ी-हाउस में लोग
इस मेज से उठ कर , उस मेज पे जा बैठे हों

कब लगती है देर परिन्दों को उड़ने में
आसमान की बाहें हैं , साथी मगर चुप बैठे हैं

पल-लम्हें सब दम साधे हैं , कैसे बोलें
शोर भरे जब दूर दूर से , मन बैठे हों

कैसे कह दें महज इत्तफाक है जिन्दगी
कभी किस्मत का इन्साफ कभी मर्जी का सिला ले बैठे हैं