शेरों और गजलों में हम जिन्दा रहे
हर कदम पर खाई थी रुसवाई थी
गिर गिर कर उठे हम डूबते उतराते रहे
जवाकुसुमों का अपना क्या रँग और क्या है महक
अपनी खुशबू से बेखबर उड़ते रहे खोते रहे
बेलों का अपना है क्या वजूद
तनों से लिपटे रहे सहारे को लड़खड़ाते रहे
उसके चेहरे का रँग ही सजता रहा
अपनी तन्हाईयों से हम घबराते रहे
जिन्दगी भर आशिक का ही मुहँ देखा किये
शेरों और गजलों में हम जिन्दा रहे
यहाँ क्लिक कर के मेरी आवाज में सुन सकते हैं .....
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