गालिब ने कहा है
मौत का एक दिन मुअइयन है
नींद क्यों रात भर नहीं आती
हम ये कहते हैं
सिर पे लटकी हो तलवार , अहसास हो जब उल्टी गिनती का
नींद की क्या बात है , पलक तक झपकाई नहीं जाती
जिन्दगी का जश्न मनायें कि मौत का मातम
खेल होगा तेरे लिए कठपुतली का , अपनी तो जान पे बन आती है
क्या करेगा इन चाक गरेबाँ वालों की जमात का
सूँघ लेते हैं गम हर जगह , दर्द से इनकी आशनाई नहीं जाती
मौत का एक दिन मुअइयन है
नींद क्यों रात भर नहीं आती
हम ये कहते हैं
सिर पे लटकी हो तलवार , अहसास हो जब उल्टी गिनती का
नींद की क्या बात है , पलक तक झपकाई नहीं जाती
जिन्दगी का जश्न मनायें कि मौत का मातम
खेल होगा तेरे लिए कठपुतली का , अपनी तो जान पे बन आती है
क्या करेगा इन चाक गरेबाँ वालों की जमात का
सूँघ लेते हैं गम हर जगह , दर्द से इनकी आशनाई नहीं जाती