मेहँदी घुल गई नस-नस में
फिर भी रँग न गुलाल हुआ
चढ़ते सूरज को नमन
ढलता सूरज बेहाल हुआ
मन की शिकन बोल उठे
हाय क्या आदमी का हाल हुआ
लीपा-पोती , रँग-रोगन
न चेहरे की ढाल हुआ
चलता-पुर्जा , ढीली-चूलें
आदमी अब सिर्फ माल हुआ
फिर भी रँग न गुलाल हुआ
चढ़ते सूरज को नमन
ढलता सूरज बेहाल हुआ
मन की शिकन बोल उठे
हाय क्या आदमी का हाल हुआ
लीपा-पोती , रँग-रोगन
न चेहरे की ढाल हुआ
चलता-पुर्जा , ढीली-चूलें
आदमी अब सिर्फ माल हुआ