हर हिस्से की धूप तय है
करता है गुलशन जो बेमानी
पकड़ी जाती है नादानी
जीवन की ये कैसी लय है
छाया की प्यासी मय है
अजीब हादसा है बेनामी
मुँह छिपाए है गुमनामी
सरक जाने का भय है
धूप-छाया की कच्ची वय है
भारी भरकम लफ्जों की पढ़ाई भी नहीं , गीत गज़लों की गढ़ाई की तालीम भी नहीं , है उम्र की चाँदी और जज्बात के समन्दर की डुबकी, किस्मत लिखने वाले की मेहरबानी , जिन्दगी का सुरूर , चन्द लफ्जों की जुबानी...