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जज्बात हमसे लिखवाते हैं
है कोई न कोई तो बात
जो लम्हात हमसे लिखवाते हैं
अपने हाथों में जिन्दगी जितनी बच जाये
फिसले जाते हैं दिन रात
जो लम्हात हमसे लिखवाते हैं
अपना चेहरा ही नहीं जाता है पहचाना
हुई ख़ुद से यूँ मुलाकात
जो लम्हात हमसे लिखवाते हैं
रोये गाये भारी मन को हल्का करने
उतरे लफ्जों में हैं हालात
जो लम्हात हमसे लिखवाते हैं
मेरी ही आवाज में सुनने के लिए
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ले चल मुझको तू पार जरा
तिनका है बना पतवार कहीं
चलना है धारा के सँग-सँग
हूँ बीच नहीं मझधार कहीं
डगमगाया है तूफाँ ने जितना
उतना ही तू दमदार कहीं
चाहत ले आती है रँग इतने
इस रौनक का तू हक़दार कहीं
चिड़ियाँ चहचहाती हैं तो जरुर
सुबह किनारे की है तरफदार कहीं
जगते बुझते तेरे हौसलों में
चाहत का ही कारोबार कहीं
छोटा अणु ही तो इकाई है
परमाणु का सूत्रधार कहीं