व्यस्तता की वजह से होली पर लिखा गीत होली के मौके पर पोस्ट नहीं कर पाई ....
आँखें मलती उठ बैठी है , होली में मन रँग बैठी है
एक उजास है अँगना में , चूनर अपनी रँग बैठी है
सरक-सरक जाये है चुनरी ,गोरी खुद हल्कान हुई है
दूर खड़े हैं कान्हा तब से , राधा जैसे मगन बैठी है
हाथ गुलाल रँग पिचकारी , गुब्बारे भी दे-दे मारे
बच्चे-बड़े हँसें किलकारी भर-भर,उम्र तो अल्हड़ बन बैठी है
ले आया फागुन बौराई , मन को मिले ठाँव कोई न
आँगन-आँगन रँग बरसे , उत्सव से भी ठन बैठी है
भाँग-धतूरा नशा नहीं है , गले मिले बिन मजा नहीं है
सिर चढ़ कर बोले ये जादू , होली-होली मगन बैठी है
मीठी-मीठी तकरारों में , लाग-लपेट की मनुहारों में
मौज-मस्ती की आड़ में देखो , रिश्तों की गरिमा बैठी है
आँखें मलती उठ बैठी है , होली में मन रँग बैठी है
एक उजास है अँगना में , चूनर अपनी रँग बैठी है
सरक-सरक जाये है चुनरी ,गोरी खुद हल्कान हुई है
दूर खड़े हैं कान्हा तब से , राधा जैसे मगन बैठी है
हाथ गुलाल रँग पिचकारी , गुब्बारे भी दे-दे मारे
बच्चे-बड़े हँसें किलकारी भर-भर,उम्र तो अल्हड़ बन बैठी है
ले आया फागुन बौराई , मन को मिले ठाँव कोई न
आँगन-आँगन रँग बरसे , उत्सव से भी ठन बैठी है
भाँग-धतूरा नशा नहीं है , गले मिले बिन मजा नहीं है
सिर चढ़ कर बोले ये जादू , होली-होली मगन बैठी है
मीठी-मीठी तकरारों में , लाग-लपेट की मनुहारों में
मौज-मस्ती की आड़ में देखो , रिश्तों की गरिमा बैठी है
बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : बीत गए दिन
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19 - 03 - 2015 को चर्चा मंच की चर्चा - 1922 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
रचना में होली के सभी रंग सजीव हो उठे हैं।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं !