मंगलवार, 12 नवंबर 2013

दिल ही चाहिये मगर

अब के मिलेंगे तुझसे तो ,दिल रख के आयेंगे घर 
दिल काँच का जरुर है , खिलौना नहीं मगर 

अकेले दम पर चलती नहीं दुनिया , हमने देखा है 
मजबूर हैं हम , नुमायश नहीं मगर  

ख़्वाब कितने महँगे हैं , बाज़ार में बिकते नहीं 
नक्दे-जाँ के बदले , दिल ही चाहिये मगर 

सवाल करना मना है , सितम तो देखिये भला 
अपना भी उसे कैसे कहें ,पास होके भी दूर ही खड़ा है मगर 

13 टिप्‍पणियां:

  1. इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :- 14/11/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक - 43 पर.
    आप भी पधारें, सादर ....

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  2. सवाल करना मना है , सितम तो देखिये भला
    अपना भी उसे कैसे कहें ,पास होके भी दूर ही खड़ा है मगर //.... क्या बात , बहुत खूब

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  3. बहोत खूबसूरत ग़ज़ल है शारदाजी

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  4. बहुत सुंदर

    मित्रों कुछ व्यस्तता के चलते मैं काफी समय से
    ब्लाग पर नहीं आ पाया। अब कोशिश होगी कि
    यहां बना रहूं।
    आभार

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  5. ख़्वाब कितने महँगे हैं , बाज़ार में बिकते नहीं
    नक्दे-जाँ के बदले , दिल ही चाहिये मगर

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  6. बहुत खूब !खूबसूरत गज़ल। सुन्दर एहसास .

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं