अब के मिलेंगे तुझसे तो ,दिल रख के आयेंगे घर
दिल काँच का जरुर है , खिलौना नहीं मगर
अकेले दम पर चलती नहीं दुनिया , हमने देखा है
मजबूर हैं हम , नुमायश नहीं मगर
ख़्वाब कितने महँगे हैं , बाज़ार में बिकते नहीं
नक्दे-जाँ के बदले , दिल ही चाहिये मगर
सवाल करना मना है , सितम तो देखिये भला
अपना भी उसे कैसे कहें ,पास होके भी दूर ही खड़ा है मगर
दिल काँच का जरुर है , खिलौना नहीं मगर
अकेले दम पर चलती नहीं दुनिया , हमने देखा है
मजबूर हैं हम , नुमायश नहीं मगर
ख़्वाब कितने महँगे हैं , बाज़ार में बिकते नहीं
नक्दे-जाँ के बदले , दिल ही चाहिये मगर
सवाल करना मना है , सितम तो देखिये भला
अपना भी उसे कैसे कहें ,पास होके भी दूर ही खड़ा है मगर
बहुत सुन्दर .
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट : फिर वो दिन
इस पोस्ट की चर्चा, बृहस्पतिवार, दिनांक :- 14/11/2013 को "हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच}" चर्चा अंक - 43 पर.
जवाब देंहटाएंआप भी पधारें, सादर ....
बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ
सवाल करना मना है , सितम तो देखिये भला
जवाब देंहटाएंअपना भी उसे कैसे कहें ,पास होके भी दूर ही खड़ा है मगर //.... क्या बात , बहुत खूब
बहुत बहुत धन्यवाद ...Meena ji
हटाएंबहोत खूबसूरत ग़ज़ल है शारदाजी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंमित्रों कुछ व्यस्तता के चलते मैं काफी समय से
ब्लाग पर नहीं आ पाया। अब कोशिश होगी कि
यहां बना रहूं।
आभार
खूबसूरत गज़ल। सुन्दर एहसास .
जवाब देंहटाएंख़्वाब कितने महँगे हैं , बाज़ार में बिकते नहीं
जवाब देंहटाएंनक्दे-जाँ के बदले , दिल ही चाहिये मगर
bahut sundar prastuti
जवाब देंहटाएंबहुत खूब !खूबसूरत गज़ल। सुन्दर एहसास .
जवाब देंहटाएंवाह... उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी
bhavpurn rachana
जवाब देंहटाएं