एक आस का दिया जला कर , कितने फूल खिलाये हमने
मैं ही नहीं हूँ कायल इसकी , दुनिया भर से जा कर पूछो
दीवाली सी जगमग होती , तम से भरी रात भी देखो
बाती सँग तेल भी सार्थक होता , जी भर कर तुम जल कर देखो
और चमन में क्या करना है , सूरज की अपनी महिमा है
रँग जाते हैं उस रँग में , जिसके सँग तुम चल कर देखो
सदियों से होता आया है , अक्सर दुख का खेल यहाँ
अन्तर्मन में न उतरे जो , ऐसा सौदा ले कर देखो
खुशबू भला कहाँ छुपती है , आँखें कर देती हैं चुगली
इन्द्रधनुष सा खिल उठता है , फलक की सीढ़ी चढ़ कर देखो
खुशबू भला कहाँ छुपती है , आँखें कर देती हैं चुगली
जवाब देंहटाएंइन्द्रधनुष सा खिल उठता है , फलक की सीढ़ी चढ़ कर देखो
बहुत सुंदर रचना.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (01-04-2014) को "स्वप्न का संसार बन कर क्या करूँ" (चर्चा मंच-1562)"बुरा लगता हो तो चर्चा मंच पर आपकी पोस्ट का लिंक नहीं देंगे" (चर्चा मंच-1569) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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नवसम्वत्सर और चैत्र नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
कामना करता हूँ कि हमेशा हमारे देश में
परस्पर प्रेम और सौहार्द्र बना रहे।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सदियों से होता आया है,अक्सर दुख का खेल यहाँ
जवाब देंहटाएंअन्तर्मन में न उतरे जो,ऐसा सौदा ले कर देखो ...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...!
RECENT POST - माँ, ( 200 वीं पोस्ट, )
बढ़िया रचना व प्रस्तुति , शारदा जी धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंनवीन प्रकाशन -: बुद्धिवर्धक कहानियाँ - ( ~ त्याग में आनंद ~ ) - { Inspiring stories part - 4 }
बहुत सुंदर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।
जवाब देंहटाएंएक आस का दिया जला कर , कितने फूल खिलाये हमने
जवाब देंहटाएंमैं ही नहीं हूँ कायल इसकी , दुनिया भर से जा कर पूछो
शारदा जी सुन्दर अभिव्यक्ति ..
भ्रमर ५
वाह... उम्दा भावपूर्ण रचना...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@भूली हुई यादों
प्रभावशाली प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी रचना बहुत कुछ सिखा जाती है