बरसों बाद पढ़े , तेरे खत फिर से
वही मौसम गुजरा है , इक बार इधर फिर से
वो जो धूप जमी थी, निगाहों के आस-पास
तेरे चेहरे पे झिलमिलाती हुई , दिखी है इधर फिर से
छोड़ आई थी जो पीछे , वो अल्हड़ सी जवानी
जागी हैं वही नादानियाँ , देखो तो इधर फिर से
रस्मों के सहारे से , महबूब बने तुम
मेरी दुनिया दिल से , चली है इधर फिर से
कौन जाने किसके खतों का , अन्जाम हो क्या
दफ़न हों सीने में या जी उट्ठे ,लम्हा-लम्हा इधर फिर से
दुनिया से छुपा कर , लिक्खा था जिन्हें
फूल बन कर खिले हैं वही , महके हैं इधर फिर से
वही मौसम गुजरा है , इक बार इधर फिर से
वो जो धूप जमी थी, निगाहों के आस-पास
तेरे चेहरे पे झिलमिलाती हुई , दिखी है इधर फिर से
छोड़ आई थी जो पीछे , वो अल्हड़ सी जवानी
जागी हैं वही नादानियाँ , देखो तो इधर फिर से
रस्मों के सहारे से , महबूब बने तुम
मेरी दुनिया दिल से , चली है इधर फिर से
कौन जाने किसके खतों का , अन्जाम हो क्या
दफ़न हों सीने में या जी उट्ठे ,लम्हा-लम्हा इधर फिर से
दुनिया से छुपा कर , लिक्खा था जिन्हें
फूल बन कर खिले हैं वही , महके हैं इधर फिर से
वाह.... उम्दा पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं"बरसों बाद पढ़े , तेरे खत फिर से
वही मौसम गुजरा है , इक बार इधर फिर से"
वाऽह…!
क्या बात है !
बरसों बाद पढ़े , तेरे खत फिर से
जवाब देंहटाएंवही मौसम गुजरा है , इक बार इधर फिर से
वाह ... क्या बात है .. मज़ा आ आया इस मतले पर ... गज़ब ...
वाह-वाह क्या बात है। बहुत ही उम्दा रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 8-5-14 को चर्चा मंच पर दिया गया है
जवाब देंहटाएंआभार
जवाब देंहटाएंdr.mahendrag ने आपकी पोस्ट " तो अपना क्या होगा " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
छोड़ आई थी जो पीछे , वो अल्हड़ सी जवानी
जागी हैं वही नादानियाँ , देखो तो इधर फिर से
सुन्दर, वक्त वक्त की बात है
dr.mahendrag द्वारा गीत-ग़ज़ल के लिए बुधवार, मई 07, 2014 को पोस्ट किया गया
आप सब का बहुत बहुत शुक्रिया ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (11-05-2014) को ''ये प्यार सा रिश्ता'' (चर्चा मंच 1609) पर भी होगी
जवाब देंहटाएं--
आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
सादर
बहुत उम्दा !
जवाब देंहटाएंबेटी बन गई बहू
दुनिया से छुपा कर , लिक्खा था जिन्हें
जवाब देंहटाएंफूल बन कर खिले हैं वही , महके हैं इधर फिर से
....छुपकर दिल से जो लिखी होती हैं ..तभी तो महकती हैं इधर उधर
बहुत खूब!