न बुलाओ हमें उस शहर में किताबों की तरह
बयाँ हो जायेंगे हम जनाज़ों की तरह
मुमकिन है खुशबुएँ जी उट्ठें
किताबों में मिले सूखे गुलाबों की तरह
जाने किस-किस के गले लग आयें
हाथ से छूट गये ख़्वाबों की तरह
यादों के गलियारे कहाँ जीने देते
चुकाना पड़ता है कर्ज किश्तों में ब्याजों की तरह
डूब जायेंगे हम आँसुओं में देखो
न उधेड़ो हमें परतों में प्याजों की तरह
चलना पड़ता है सहर होने तलक
दिले-नादाँ शतरंज के प्यादों की तरह
मुट्ठी में पकड़ सका है भला कौन
शहर-दर-शहर गुजरे मलालों की तरह
बयाँ हो जायेंगे हम जनाज़ों की तरह
मुमकिन है खुशबुएँ जी उट्ठें
किताबों में मिले सूखे गुलाबों की तरह
जाने किस-किस के गले लग आयें
हाथ से छूट गये ख़्वाबों की तरह
यादों के गलियारे कहाँ जीने देते
चुकाना पड़ता है कर्ज किश्तों में ब्याजों की तरह
डूब जायेंगे हम आँसुओं में देखो
न उधेड़ो हमें परतों में प्याजों की तरह
चलना पड़ता है सहर होने तलक
दिले-नादाँ शतरंज के प्यादों की तरह
मुट्ठी में पकड़ सका है भला कौन
शहर-दर-शहर गुजरे मलालों की तरह
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 22-01-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1866 में दिया गया है
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
यादों के गलियारे कहाँ जीने देते
जवाब देंहटाएंचुकाना पड़ता है कर्ज किश्तों में ब्याजों की तरह
बहुत सुंदर.
waah sundar gajal
जवाब देंहटाएंचलना पड़ता है सहर होने तलक
जवाब देंहटाएंदिले-नादाँ शतरंज के प्यादों की तरह
सुंदर
यादों के गलियारे कहाँ जीने देते
चुकाना पड़ता है कर्ज किश्तों में ब्याजों की तरह
बहुत सुंदर
यादों के गलियारे कहाँ जीने देते
जवाब देंहटाएंचुकाना पड़ता है कर्ज किश्तों में ब्याजों की तरह .
क्या बात कही है ..वाह ..
बहुत सुंदर लिखा है
जवाब देंहटाएंचलना पड़ता है सहर होने तलक
जवाब देंहटाएंदिले-नादाँ शतरंज के प्यादों की तरह
वाह! क्या खूब कहा है ...यह ख़ास लगा.
अच्छी ग़ज़ल .
उम्दा शेर और बेहतरीन ग़ज़ल के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@मेरे सपनों का भारत ऐसा भारत हो तो बेहतर हो
डूब जायेंगे हम आँसुओं में देखो
जवाब देंहटाएंन उधेड़ो हमें परतों में प्याजों की तरह
शानदार ग़ज़ल है शारदा जी ।
बहुत अच्छी लगी।
अच्छी ग़ज़ल है .
जवाब देंहटाएंगोस्वामी तुलसीदास
वाह , बहुत उम्दा भाव हैं
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