और हाँ नैनीताल जैसे ज़न्नत , और अब विदा लेने का वक्त आ चला है ....
कोई मेरे हाथों से जन्नत को लिये जाता है
मेरे ख्वाबों के फलक को , लम्हों में पिये जाता है
घबरा के मुँह फेर लेती है आशना अक्सर
अब ये आलम है के दिल दीवाना किये जाता है
अपने ही शहर में मुसाफिर की तरह रहे हम
अपनों के बीच ही कोई बेगाना किये जाता है
खिड़की से घर में दाखिल होते अब्र के झुण्ड
दिल तक उतरती हुई नमी से कोई ज़ुदा किये जाता है
फिर न ये नज़ारे होंगे , न ये आबो-हवा
दिल ही नादाँ है जो , नजरों से पिये जाता है
बरसों-बरस फुर्सत न मिली , छूटने लगा जो शहर
ये कौन है जो फिजाँ का मोल किये जाता है
कोई मेरे हाथों से जन्नत को लिये जाता है
मेरे ख्वाबों के फलक को , लम्हों में पिये जाता है
घबरा के मुँह फेर लेती है आशना अक्सर
अब ये आलम है के दिल दीवाना किये जाता है
अपने ही शहर में मुसाफिर की तरह रहे हम
अपनों के बीच ही कोई बेगाना किये जाता है
खिड़की से घर में दाखिल होते अब्र के झुण्ड
दिल तक उतरती हुई नमी से कोई ज़ुदा किये जाता है
फिर न ये नज़ारे होंगे , न ये आबो-हवा
दिल ही नादाँ है जो , नजरों से पिये जाता है
बरसों-बरस फुर्सत न मिली , छूटने लगा जो शहर
ये कौन है जो फिजाँ का मोल किये जाता है
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (02-08-2015) को "आशाएँ विश्वास जगाती" {चर्चा अंक-2055} पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bahut bahut shukriya ...
हटाएंखूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंफिर न ये नज़ारे होंगे , न ये आबो-हवा
जवाब देंहटाएंदिल ही नादाँ है जो , नजरों से पिये जाता है
खूबसूरत नज़्म.
भावसंसिक्त बेहतरीन ग़ज़ल कही है :
जवाब देंहटाएंअपने ही शहर में मुसाफिर की तरह रहे हम
अपनों के बीच ही कोई बेगाना किये जाता है
ये सारा झगड़ा अपनों का ही तो है ,
माया के कुनबे को वो अपना कहे जाते हैं ,
दिखाते रहते उस अपने को पीठ जिसका तू है