ये मेरे साथ चल रहा है किसी आँच का धुआँ
इतनी बदली हुई फ़िज़ाँ है के होशो-हवास में नहीं है समां
ऐ वक़्त , इस ज़िल्लत का शुक्रिया ,
ये पीड़ा जो मुझे ले आई है कसक के इस मुकाम तक
सिखा गई है जीना , टूट जाने तलक
ज़िन्दगी ने बड़ी भारी कीमत माँगी है
जो राह पहुँचाती है ज़िन्दगी तक , उसकी ही आहुति माँगी है
चेहरों के पीछे का सच ,ये तुझको होगा मालूम
मैंने नियति के आगे घुटने नहीं टेके
सिर्फ नियति से लय मिलाने की कोशिश की है
इतनी बदली हुई फ़िज़ाँ है के होशो-हवास में नहीं है समां
ऐ वक़्त , इस ज़िल्लत का शुक्रिया ,
ये पीड़ा जो मुझे ले आई है कसक के इस मुकाम तक
सिखा गई है जीना , टूट जाने तलक
ज़िन्दगी ने बड़ी भारी कीमत माँगी है
जो राह पहुँचाती है ज़िन्दगी तक , उसकी ही आहुति माँगी है
चेहरों के पीछे का सच ,ये तुझको होगा मालूम
मैंने नियति के आगे घुटने नहीं टेके
सिर्फ नियति से लय मिलाने की कोशिश की है
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (28-07-2017) को "अद्भुत अपना देश" (चर्चा अंक 2680) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " न्यू यॉर्कर बिहारी के मन की बात “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंThanks a lot.
हटाएंsundar abhivyakti
जवाब देंहटाएंDhnyvad Shashi ji
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