उठ रे मन कोई सुबह कर ले
आतिशे-ग़म की इन्तिहाँ कर ले
यूँ ही नहीं चल सकेगा आगे
माथे में कोई उजाला भर ले
राहें अँधेरी , दिन भी अँधेरे
कैसे निभेंगे सुब्हो-शाम के फेरे
कोई न कोई तो भुगतान होगा
तू भी गम से किनारा कर ले
जां पे रखेगा जो पत्थर कोई
मुर्दा नहीं है हलचल तो होगी
नदिया के पार किनारा कर ले
तिनके का ही सहारा कर ले
आतिशे-ग़म की इन्तिहाँ कर ले
यूँ ही नहीं चल सकेगा आगे
माथे में कोई उजाला भर ले
राहें अँधेरी , दिन भी अँधेरे
कैसे निभेंगे सुब्हो-शाम के फेरे
कोई न कोई तो भुगतान होगा
तू भी गम से किनारा कर ले
जां पे रखेगा जो पत्थर कोई
मुर्दा नहीं है हलचल तो होगी
नदिया के पार किनारा कर ले
तिनके का ही सहारा कर ले
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (02-10-2018) को "जय जवान-जय किसान" (चर्चा अंक-3112) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 01/10/2018 की बुलेटिन, ये बेचारा ... होम-ऑटोमेशन का मारा “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआवश्यक सूचना :
जवाब देंहटाएंसभी गणमान्य पाठकों एवं रचनाकारों को सूचित करते हुए हमें अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है कि अक्षय गौरव ई -पत्रिका जनवरी -मार्च अंक का प्रकाशन हो चुका है। कृपया पत्रिका को डाउनलोड करने हेतु नीचे दिए गए लिंक पर जायें और अधिक से अधिक पाठकों तक पहुँचाने हेतु लिंक शेयर करें ! सादर https://www.akshayagaurav.in/2019/05/january-march-2019.html
खूबसूरत पंक्तियाँ
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