प्यार इज़हार माँगता है ,
और बार बार माँगता है
जीने की वजह बनता है ,
इसीलिए तो इकरार माँगता है
ख़ुशी भी छलकती है ,
और ग़म भी झलकता है
वो जो आँखों से बयाँ होता है ,
दिल वही सुनने को तरसता है
तुम जो हो आस पास तो ,
हम हो जाते हैं बेफिक्रे
दिल के टुकड़ों को कोई कैसे समझाये
दिल हो साबुत तब ही तो धड़कता है
और बार बार माँगता है
जीने की वजह बनता है ,
इसीलिए तो इकरार माँगता है
ख़ुशी भी छलकती है ,
और ग़म भी झलकता है
वो जो आँखों से बयाँ होता है ,
दिल वही सुनने को तरसता है
तुम जो हो आस पास तो ,
हम हो जाते हैं बेफिक्रे
दिल के टुकड़ों को कोई कैसे समझाये
दिल हो साबुत तब ही तो धड़कता है
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-07-2019) को "मेघ मल्हार" (चर्चा अंक- 3385) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'