सोमवार, 1 जुलाई 2019

इज़हार

प्यार इज़हार माँगता है ,
और बार बार माँगता है 
जीने की वजह बनता है ,
इसीलिए तो इकरार माँगता है 

ख़ुशी भी छलकती है , 
और ग़म भी झलकता है 
वो जो आँखों से बयाँ होता है , 
दिल वही सुनने को तरसता है 

तुम जो हो आस पास तो , 
हम हो जाते हैं बेफिक्रे 
दिल के टुकड़ों को कोई कैसे समझाये 
दिल हो साबुत तब ही तो धड़कता है 




1 टिप्पणी:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-07-2019) को "मेघ मल्हार" (चर्चा अंक- 3385) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं