आज रस्मों के सहारे जो अपने हुए
कल वही लिखेंगे इबारतें दिल की
खुदा भी इबादत में अपना दर रखते हैं
भागती-दौड़ती दुनिया में मन्जिल का पता किसको
इश्क की लौ ही काफी है
हम रौशनी में अपना घर रखते हैं
कल वही लिखेंगे इबारतें दिल की
खुदा भी इबादत में अपना दर रखते हैं
भागती-दौड़ती दुनिया में मन्जिल का पता किसको
इश्क की लौ ही काफी है
हम रौशनी में अपना घर रखते हैं
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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं