वो दिओं सी जलती आँखें , करें इन्तिज़ार किसी का
कौन जाने बुझ-बुझ के जले , जिया बेकरार किसी का
हाले-दिल किस को सुनाएँ
क्यूँ दिल है सोगवार किसी का
रँग चाहत के भर तो लेते हम भी
हासिल न हुआ इकरार किसी का
हाथ लगते ही बहार आ जाती
तमन्नाओं ये नहीं रोज़गार किसी का
नरगिसी बातों में फिसल तो जाते हैं
चमन में क्या है ऐतबार किसी का
वो दिओं सी जलती आँखें , करें इन्तिज़ार किसी का
कौन जाने बुझ-बुझ के जला है जिया बेकरार किसी का
.बहुत सुन्दर भावनात्मक प्रस्तुति आभार सौतेली माँ की ही बुराई :सौतेले बाप का जिक्र नहीं आप भी जानें हमारे संविधान के अनुसार मोहपाश को छोड़ सही रास्ता दिखाएँ .
जवाब देंहटाएंBehtreen Gazal....
जवाब देंहटाएंbahut hi sunder..excellent maam.
जवाब देंहटाएंहाथ लगते ही बहार आ जाती
तमन्नाओं ये नहीं रोज़गार किसी का
.
these lines steal the show.
रचना पसंद करने का शुक्रिया
हटाएंशारदा अरोरा
वाह....!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...!
आपकी इस पोस्ट का लिंक आज सोमवार के चर्चा मंच पर भी है।
बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंBlogVarta.com पहला हिंदी ब्लोग्गेर्स का मंच है जो ब्लॉग एग्रेगेटर के साथ साथ हिंदी कम्युनिटी वेबसाइट भी है! आज ही सदस्य बनें और अपना ब्लॉग जोड़ें!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
www.blogvarta.com
बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सुन्दर लाजबाब अभिव्यक्ति।।।।।।
जवाब देंहटाएंमेरी नई रचना
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
पृथिवी (कौन सुनेगा मेरा दर्द ) ?
ये कैसी मोहब्बत है
बहुत ही बेहतरीन गजल...
जवाब देंहटाएं:-)
अच्छे शब्दो के मनको से बनी माला
जवाब देंहटाएंआप सब को रचना पसंद करने का बहुत बहुत शुक्रिया
जवाब देंहटाएंशारदा अरोरा
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 5/3/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है|
जवाब देंहटाएंवाह!!!बहुत सुन्दर गजल ,,, बधाई शारदा जी,,,,
जवाब देंहटाएंRecent post: रंग,
रँग चाहत के भर तो लेते हम भी
जवाब देंहटाएंहासिल न हुआ इकरार किसी का ..
बहुत खूब ... बस एक इकरार ही तो चाहिए ... ये रंग भर जाते हैं ...
बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर गजल
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल शारदा जी ...
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएं