रात का मुँह देखा तो जानी दिन की अहमियत
दिल जला कर ही सही , कलम की रौशनाई हुई
लहरें ही तो होती हैं शान समन्दर की
ज़िन्दा हैं तो हलचल है , वरना मुर्दों की बस्ती हुई
रग-रग में समाया है अरमाँ बन कर
ज़ुदा करते नहीं बनता , खूं जैसी पहचान हुई
पकड़ लेता है कलम जब-जब समन्दर
बह जाता है हर कोई , बौनों सी हस्ती हुई
ज़िन्दगी होती है सहरा के किनारों में भी
नमी सारी तप कर , सूरज की नजर हुई
दिल जला कर ही सही , कलम की रौशनाई हुई
लहरें ही तो होती हैं शान समन्दर की
ज़िन्दा हैं तो हलचल है , वरना मुर्दों की बस्ती हुई
रग-रग में समाया है अरमाँ बन कर
ज़ुदा करते नहीं बनता , खूं जैसी पहचान हुई
पकड़ लेता है कलम जब-जब समन्दर
बह जाता है हर कोई , बौनों सी हस्ती हुई
ज़िन्दगी होती है सहरा के किनारों में भी
नमी सारी तप कर , सूरज की नजर हुई
आप की ये सुंदर रचना शुकरवार यानी 15-03-2013 की नई पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही है...
जवाब देंहटाएंआप के सुझावों का स्वागत है। आप से मेरा निवेदन है कि आप भी इस हलचल में आकर इसकी शोभा बढ़ाएं...
सूचनार्थ।
बहुत उम्दा शानदार गजल ,,,,
जवाब देंहटाएंRecent post: होरी नही सुहाय,
लहरें ही तो होती हैं शान समन्दर की
जवाब देंहटाएंज़िन्दा हैं तो हलचल है , वरना मुर्दों की बस्ती हुई .
बहुत खूब
ज़िन्दगी होती है सहरा के किनारों में भी
जवाब देंहटाएंनमी सारी तप कर , सूरज की नजर हुई
सुंदर भावपूर्ण चिंतन.
ज़िन्दगी होती है सहरा के किनारों में भी
जवाब देंहटाएंनमी सारी तप कर , सूरज की नजर हुई
वाह! सच बहुत खूब लिखा है.
अहसास महसूस करने वाला मिला,सुकून मिला
जवाब देंहटाएंवरना जिन्दगी हमारी भी बस यूँ ही बसर हुई .....
शुभकामनायें!