ज़िन्दगी कुछ यूँ भी गुजरी
हाथ और प्याले की दूरी मीलों लगी
उसको चलना ही नहीं था साथ
बात कहने में इक उम्र लगी
चाहने भर से क्या होता
ना-मन्जूरी की ही मुहर लगी
ये जनम तो तन्हाई के नाम
समझने में बहुत देर लगी
हाथ में कुछ भी नहीं है
माथे पे शिकन ही शिकन लगी
गर ताजमहल नहीं है किस्मत में मेरी
खाकसारी भी मुझे न्यारी ही लगी
सजा ही है ईनाम गर तो
दाँव पर उम्र सारी ही लगी
हाथ और प्याले की दूरी मीलों लगी
उसको चलना ही नहीं था साथ
बात कहने में इक उम्र लगी
चाहने भर से क्या होता
ना-मन्जूरी की ही मुहर लगी
ये जनम तो तन्हाई के नाम
समझने में बहुत देर लगी
हाथ में कुछ भी नहीं है
माथे पे शिकन ही शिकन लगी
गर ताजमहल नहीं है किस्मत में मेरी
खाकसारी भी मुझे न्यारी ही लगी
सजा ही है ईनाम गर तो
दाँव पर उम्र सारी ही लगी
बेहतरीन सुंदर प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRecent post : होली की हुडदंग कमेंट्स के संग
बहुत ही बेहतरीन सुन्दर रचना,आभार.
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
हमने तो दिया था उनको दिल अपना
जवाब देंहटाएंपर उनको ये भी हमारी दिल्लगी लगी ....
शुभकामनायें!
बहुत सुन्दर.
जवाब देंहटाएंसावधान ! ये अन्दर की बात है.
Jindagi tanhaee ke nam................
जवाब देंहटाएंbahut bhawpoorn.
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (6-4-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
शानदार
जवाब देंहटाएंवाह.....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना.....
सादर
अनु