मेहँदी घुल गई नस-नस में
फिर भी रँग न गुलाल हुआ
चढ़ते सूरज को नमन
ढलता सूरज बेहाल हुआ
मन की शिकन बोल उठे
हाय क्या आदमी का हाल हुआ
लीपा-पोती , रँग-रोगन
न चेहरे की ढाल हुआ
चलता-पुर्जा , ढीली-चूलें
आदमी अब सिर्फ माल हुआ
फिर भी रँग न गुलाल हुआ
चढ़ते सूरज को नमन
ढलता सूरज बेहाल हुआ
मन की शिकन बोल उठे
हाय क्या आदमी का हाल हुआ
लीपा-पोती , रँग-रोगन
न चेहरे की ढाल हुआ
चलता-पुर्जा , ढीली-चूलें
आदमी अब सिर्फ माल हुआ
waah bahut khoob
जवाब देंहटाएंचलता-पुर्जा , ढीली-चूलें
जवाब देंहटाएंआदमी अब सिर्फ माल हुआ,,,
वाह,,, बहुत सुंदर गजल,,,
RECENT POST: जिन्दगी,
लीपा-पोती , रँग-रोगन
जवाब देंहटाएंन चेहरे की ढाल हुआ--------
वर्तमान के सच को उजागर करती रचना
बहुत सुंदर
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
पापा ---------
आपकी यह रचना कल मंगलवार (18 -06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
जवाब देंहटाएंबढिया रचना
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
आपके ब्लॉग पर देर से आने के लिए क्षमा
जवाब देंहटाएंलाजवाब रचना -- बधाई
चढ़ते सूरज को नमन
जवाब देंहटाएंढलता सूरज बेहाल हुआ
...आज का यथार्थ...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
चढ़ते सूरज को नमन
जवाब देंहटाएंढलता सूरज बेहाल हुआ
Bas yahee haal to apna hai!Kya khoob likh dala aapne!
बहुत बढिया रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत शेर हैं सभी ...
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