सपने ओढूँ ,सपने बिछाऊँ
मगर हकीकत से जी न चुराऊँ
कुछ ऐसी करनी कर मौला
मेरी ज़िन्दगी में भी ,कोई रँग तो भर मौला
कितना खोया , कितना पाया
लाख सँभाला ,कहाँ टिक पाया
चला-चली का मेला है बेशक
मेरे हिस्से में भी , कोई रहमत तो कर मौला
किसी ने दस्तर-खान बिछाया
किसी ने पँखों को सहलाया
लाख ज़ुदा हों अपनी राहें
कोई फ़लक तो हमको मिला दे
ऐसे हमको दो पर मौला
मगर हकीकत से जी न चुराऊँ
कुछ ऐसी करनी कर मौला
मेरी ज़िन्दगी में भी ,कोई रँग तो भर मौला
कितना खोया , कितना पाया
लाख सँभाला ,कहाँ टिक पाया
चला-चली का मेला है बेशक
मेरे हिस्से में भी , कोई रहमत तो कर मौला
किसी ने दस्तर-खान बिछाया
किसी ने पँखों को सहलाया
लाख ज़ुदा हों अपनी राहें
कोई फ़लक तो हमको मिला दे
ऐसे हमको दो पर मौला
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