उठते हैं दुआओं में जब हाथ मेरे
लब हिलते ही नहीं
टूटा है भरोसा मेरा
अल्फ़ाज़ निकलते ही नहीं
पड़ गये छाले हैं
चला जाता ही नहीं
है कैसा सफर ये
सूलियाँ दिखती ही नहीं
और जाऊँ भी किधर
रूह का शहर मिलता ही नहीं
नहीं बनना है तमाशा मुझको
साबुत हूँ , आँख में पानी भी नहीं
एक धीमा सा जहर उतरा है
मेरी रगों में , बगावत भी नहीं
लब हिलते ही नहीं
टूटा है भरोसा मेरा
अल्फ़ाज़ निकलते ही नहीं
पड़ गये छाले हैं
चला जाता ही नहीं
है कैसा सफर ये
सूलियाँ दिखती ही नहीं
और जाऊँ भी किधर
रूह का शहर मिलता ही नहीं
नहीं बनना है तमाशा मुझको
साबुत हूँ , आँख में पानी भी नहीं
एक धीमा सा जहर उतरा है
मेरी रगों में , बगावत भी नहीं
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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं