लम्हों ने कीं ख़ताएँ
सदियों ने पाईं सजाएँ
सहर सी खिलीं फिज़ाएँ
मरघट सी सूनीं खिज़ाएँ
लफ़्ज़ों में क्या बताएँ
हाल अपना क्यूँ सुनाएँ
फूलों को जो दिखाएँ
काँटों पे चल बताएँ
ज़िन्दगी की हैं अदाएँ
सहरां में फूल खिलाएँ
बर्फ सी ठण्डी शिलाएँ
चिन्गारी किस को दिखाएँ
सदियों ने पाईं सजाएँ
सहर सी खिलीं फिज़ाएँ
मरघट सी सूनीं खिज़ाएँ
लफ़्ज़ों में क्या बताएँ
हाल अपना क्यूँ सुनाएँ
फूलों को जो दिखाएँ
काँटों पे चल बताएँ
ज़िन्दगी की हैं अदाएँ
सहरां में फूल खिलाएँ
बर्फ सी ठण्डी शिलाएँ
चिन्गारी किस को दिखाएँ
बर्फ सी ठण्डी शिलाएँ
जवाब देंहटाएंचिन्गारी किस को दिखाएँ ....
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खुद ही झेलना है अपना दुखडा
बहुत ख़ूब, सुन्दर पंक्तियाँ
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