न गम किया , न गुमान किया
यही तरीका है जीने का , जिसने आराम दिया
चाहा कि गम से दूरी बरकरार रहे
ये वो शय है हर कदम , जिसका दीदार किया
हम खलिश को भी रखते हैं अपनी निगरानी में
सुनते हैं कई बार वजूद इसने भी तार-तार किया
सहलाता है कभी वक़्त भी थपकियाँ दे दे कर
घूँट भरते हैं सुकूँ के , हमने भी इंतज़ार किया
आँखें बन्द होती हैं सुकूँ में गुमाँ में भी
ये ठँडा रखता है गुमाँ की गर्मी ने बवाल किया
हम खलिश को भी देते हैं पैराहन
कलम लिखती है लफ्ज़ सीते हैं , अपने सीने से गम उतार दिया
Coming Soon
18 घंटे पहले