गुरुवार, 19 अगस्त 2010

चुप से दिखाने के लिये

कर रहा इन्कार आँसू भी , आँख में आने के लिये
चुक गया दरिया भी , आतिशे-गम बुझाने के लिये

हो गये हैं ढीठ से , चुप से दिखाने के लिये
मार कर पत्थर तो देखो , हमको हिलाने के लिये

सैय्याद ने ले लिये पर , गिरवी दिखाने के लिये
उम्मीद पर चलते रहो , बेपरों के हौसले आजमाने के लिये

रख छोड़े थे ताक पर , कितने ही नगमे भुलाने के लिये
पिटारी खोल कर बैठे हैं , वही लम्हे भुनाने के लिये 

लौट आये हैं वही दिन रात , हमको सताने के लिये
पुराने फिर वही किस्से , दिले-नादाँ दुखाने के लिये

घड़ों पानी तो डाला था , जख्मे-दिल सहलाने के लिये
गढ़े मुर्दे छेड़े किसने , चिंगारी यूँ सुलगाने के लिये