शुक्रवार, 18 अप्रैल 2014

बुत किसे होना पड़ा

काँटों पे सोना पड़ा 
फूलों को रोना पड़ा 

दिल की लगी देखो 
नींदों को खोना पड़ा 

सफर लम्हों का है 
सदियों को ढोना पड़ा 

दीदारे-खुदा के लिये 
हस्ती को खोना पड़ा 

जन्मों का मैला मन 
असुँअन से धोना पड़ा 

गँगा की पावन लहर 
आस का दोना पड़ा 

किसकी हथेली पे जाँ 
बुत किसे होना पड़ा