जलो तो चरागों की तरह जलो
शबे-गम के इरादों की तरह जलो
किसने देखी है सुबह
आफताब के वादों की तरह जलो
कतरा कतरा काम आये किसी के
किसी काँधे पे दिलासे की तरह जलो
लगा के तीली रौशन हो जाये
सुलगते हुए सवालों की तरह जलो
हवा आँधी तूफाँ तो आयेंगे
टक्कर के हौसलों की तरह जलो
मिट्टी की महक वाज़िब है
खुदाओं के शहर में मसीहों की तरह जलो
शुक्रवार, 19 अगस्त 2011
मंगलवार, 2 अगस्त 2011
कौन खुशियों का तलबगार नहीं
कैसे कह दें के है इन्तिज़ार नहीं
कौन खुशियों का तलबगार नहीं
दिल वो बस्ती है जो दिन रात सजा करती है
न कहना के है कोई खरीदार नहीं
तुम्हीं तो छोड़ गई हो ऐ जिन्दगी यहाँ मुझको
तुम्हें गुरेज है हमसे प्यार नहीं
बदल गए हैं मायने कितने ही
तन्हाई भी है क्या गमे-यार नहीं
कर लेते हम हालात से समझौता
जीत है ये भी , है अपनी हार नहीं
उसकी बातों में बला का जादू है
यूँ ही दुनिया का दारोमदार नहीं
कौन खुशियों का तलबगार नहीं
दिल वो बस्ती है जो दिन रात सजा करती है
न कहना के है कोई खरीदार नहीं
तुम्हीं तो छोड़ गई हो ऐ जिन्दगी यहाँ मुझको
तुम्हें गुरेज है हमसे प्यार नहीं
बदल गए हैं मायने कितने ही
तन्हाई भी है क्या गमे-यार नहीं
कर लेते हम हालात से समझौता
जीत है ये भी , है अपनी हार नहीं
उसकी बातों में बला का जादू है
यूँ ही दुनिया का दारोमदार नहीं
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