शुक्रवार, 27 जून 2025

रंग ज़िन्दगी के

रंग ज़िन्दगी के ही बिखरते रहे 

हर हाल में जीने की क़सम खाये हैं 


सावन की झड़ी बरस कर चली भी गई 

चंद लम्हे ही हाथ आये हैं 


ख्वाबों के रंग तो बड़े चटकीले थे 

आँख में क्यों पशो-पेश के जंगल से उग आये हैं 


वक्त की धूप में तपे हैं 

मटमैले से हो आये हैं 


कुन्दन बनने की चाह तो थी 

भट्ठी से घबरा के उठ आये हैं 


पहला कदम ही तय करता है ढलान 

दिशा सही से ही मुकाम नजर आए हैं 


किसी को लगे कुन्दन से , किसी को पिछड़े हुए 

रखो तो पारखी नजर , वो किन जूतों में चल के आये हैं 

मंगलवार, 13 मई 2025

ज़िन्दगी बजानी है

बिगड़ा हुआ साज है और ज़िन्दगी बजानी है सँवरे या न सँवरे ये , कोई धुन तो बनानी है 


ज़िन्दगी तो यूँ अक्सर बहुत बोलती है 

रातों को जगाती है ,

बतियाती है के कोई बात तो बनानी है 


दिखता नहीं भले कुछ भी 

इक समन्दर है उम्र के काँधे पर ,

पार उतरने को कश्ती तो बनानी है 


जो तुमने मानी होती कोई बात , 

तो हम भी सयाने होते 

हालात के मारे हुए और ज़िन्दगी तो सजानी है 

मंगलवार, 15 अगस्त 2023

बिटिया के लिए

बिटिया की तरफ़ से ... 

मम्मा मैं तेरी मैना 
मुखड़ा हूँ तेरा अपना
बैठी मुँडेर पर हूँ 
चहकूँ मैं तेरे अँगना 

 लौटूँ मैं जब भी घर को 
 रखना तू मुझको दिल में 
 ये घर है मेरा अपना 
 मम्मा मैं तेरी मैना 

 बचपन आवाज़ें देता 
 यूँ संग-साथ चलता 
 ममता ही मेरा गहना 
 मम्मा मैं तेरी मैना 

 उड़ती गगन में जब-जब 
 पंखों में भर के ख़ुशबू 
तेरा ही तो हूँ सपना 
मम्मा मैं तेरी मैना 

 माँ का दिल ये कहता है ... 

 तुझे दिल में छुपा कर रख लूँ मैं 
 दुनिया की नज़र से बचा कर रख लूँ मैं 
फूलों पर चला लूँ , काँटों से बचा लूँ 
कोई ऐसी जमीं मुमकिन कर लूँ 
ठण्डी हवा सी मैं सदा साथ तेरे 
हौले से तेरे कानों में कह दूँ 
आगे तू बढ़ना ,पल्ला तू झाड़ , ग़म नहीं कोई करना हर नामुमकिन भी मुमकिन होगा ,हिम्मत के आगे नहीं कोई टिकता 
स्नेह से अपनी गागर भरना 
 तुझे नज़रों में बसा कर रख लूँ मैं 

सोमवार, 6 मार्च 2023

खिल जाती हैं दीवारें

किस काम का ये घर जो इसमें सज्जन मित्र न आएँ 

खिल जाती हैं दीवारें जो आकर मित्र मुस्कुराएँ 


कोई तो ठौर हो ऐसा कि धूप में भी छाँव हम पाएँ 

लगा लें सीने से ऐसी दुनिया को ,जो कहीं आराम हम पाएँ 


उग आते हैं चाँद सूरज तो इकट्ठे  , हमारे मन तो जरा गुनगुनाएँ 

नज़र उठती है यूँ तो अक्सर ,किसी आँख में वफ़ा का रँग तो पाएँ 


ये दुनिया है अजब तिलिस्म , तेरी जादूगरी को हम भी कुछ आबाद कर जाएँ 

आप आये हमारे घर , महका है समाँ ,समझ लो खुद ही , ये बेशक हम न कह पाएँ 



सोमवार, 21 नवंबर 2022

चलना होगा

 बहुत कुछ नहीं होगा तेरे मन का , फिर भी तुझे चलना होगा 

ये लम्हों का सफ़र सदियों-सदियों का चलना होगा 


तुम भूल गए हो के वो दोस्त नहीं है 

लब पर आते हुए लफ़्ज़ों को संभलना होगा 


तुमको वफ़ा करनी थी इसीलिए की

बेचैनियों के बिस्तर पर रात को ढलना होगा 


ज़िन्दगी महज़ ख़्यालों के सिवा कुछ भी नहीं 

रोज़ मरते-जीते खुद को ही छलना होगा 


छाँव क़िस्मत में होगी तो मिलेगी 

हवा का रुख़ मोड़ना परछाइयों से मिलना होगा 


मंज़िल थी सामने ही फिर भी पहुँचे न हम कहीं 

किसे पता था दिल से दिल तक का सफ़र , मीलों-मील का चलना होगा 

शुक्रवार, 5 अगस्त 2022

ज़िन्दगी निभाने में

 बूँद-बूँद रिस गये हम , उम्र के प्याले से 

रीते रहे हम , ज़िन्दगी के निवाले से 


तुरपनें , पैबंद, बखिए , सीवनें 

सारी क़वायदें ज़िन्दगी निभाने में 


आँखों के सामने पतझड़ जो उतरें 

सीने के मौसम कैसे फिर निखरें 


हमने तो अक्सर तिनके की छाँव में 

खुद को सम्भाला , धूप के गाँव में 


अपनी-अपनी धरती है , अपना-अपना अम्बर है 

एक ख़ुदा बाहर तो एक पैग़म्बर अन्दर है 

रविवार, 19 दिसंबर 2021

आज की कड़वी हकीकत

चाँद तक जा पहुँचे हो

पड़ोसी के घर तक पहुँच नहीं 


कितनी डिग्रियाँ कर लीं हासिल 

आम सी बात तो मालूम नहीं 


कितने दोस्त हैं तुम्हारे F.B. पर 

मगर एक भी जिगरी यार नहीं 


बड़े से बँगले में हो तनहा 

चार-जन का भी तो परिवार नहीं 


कितने अंकों में है आय तुम्हारी 

मगर मन को तो है कहीं करार नहीं 


कितनी कीमती-कीमती घड़ियाँ हैं हासिल 

मगर पल-दो-पल का वक़्त भी मयस्सर नहीं 


बुद्धि से मात देते हो दिग्गजों को 

मगर दिल से दिल तक पहुँचने की संवेदनाएँ ही नहीं 


आज की कड़वी हकीकत है ये 

कंक्रीट के जंगल में आदमी सा कोई किरदार नहीं