शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

कुछ भी नहीं पूछा है उसने

परछाइयों से लड़ बैठी हूँ
अब कोई मुझे बुलाये न

कुछ भी नहीं पूछा है तुमने
ये कोई मुझे बताये न

दरिया तो पार किया मैंने
अब साहिल पे अटकाये न

पतवारें तो होती बहाना हैं
दम अपना कोई भुलाये न

नहीं पछाड़ा मुझको दरिया ने
किनारे से कोई लड़ाये न

हाय कोई ढाल बनी होती
पानी पर कोई चलाये न

कुछ भी नहीं पूछा है उसने
परछाईँ सा कोई डराये न