सोमवार, 25 मार्च 2013

ऐसी तलब

तुम हो न सके मेरे 
दुनिया की ख्वाहिशों से मेरा काम क्या 
दिल से दिल को जो मिलाये 
ऐसी तलब का है भला दाम क्या 

हम तो डूबे हैं वहीँ पर 
उथले किनारों पर भला वफ़ा का काम क्या 
चलें तो चलें कैसे 
वो मेंहदी , वो महावर का भला सा नाम क्या 

वक़्त की कोई चाल सूरज के साथ मिली 
भरी दुपहरी में और घाम क्या 
चाहने किस को चले हैं 
इश्क की नगरी में किसी को आराम क्या 

अश्कों से लिखी दास्तान , परवाह किसे है 
इस अहले-सफ़र का हो अन्जाम क्या 

मंगलवार, 12 मार्च 2013

दिन की अहमियत

रात का मुँह देखा तो जानी दिन की अहमियत 
दिल जला कर ही सही , कलम की रौशनाई हुई 

लहरें ही तो होती हैं शान समन्दर की 
ज़िन्दा हैं तो हलचल है , वरना मुर्दों की बस्ती हुई 

रग-रग में समाया है अरमाँ बन कर 
ज़ुदा करते नहीं बनता , खूं जैसी पहचान हुई 

पकड़ लेता है कलम जब-जब समन्दर 
बह जाता है हर कोई , बौनों सी हस्ती हुई 

ज़िन्दगी होती है सहरा के किनारों में भी 
नमी सारी तप कर , सूरज की नजर हुई 

रविवार, 3 मार्च 2013

बुझ-बुझ के जले


वो दिओं सी जलती आँखें , करें इन्तिज़ार किसी का 
कौन जाने बुझ-बुझ के जले , जिया बेकरार किसी का 

हाले-दिल किस को सुनाएँ 
क्यूँ दिल है सोगवार किसी का 

रँग चाहत के भर तो लेते हम भी 
हासिल न हुआ इकरार किसी का 

हाथ लगते ही बहार आ जाती 
तमन्नाओं ये नहीं रोज़गार किसी का 

नरगिसी बातों में फिसल तो जाते हैं 
चमन में क्या है ऐतबार किसी का 

वो दिओं सी जलती आँखें , करें इन्तिज़ार किसी का 
कौन जाने बुझ-बुझ के जला है जिया बेकरार किसी का