शुक्रवार, 26 मार्च 2010

थपक कौन सी

चुनरी सितारों से जड़ा रक्खी है
बिरहन ने कोई अलख जगा रक्खी है

रात कटती नहीं सब्र भी टूटा नहीं
दिल के साज पे बाशिन्दों को
थपक कौन सी सुना रक्खी है
बिरहन ने कोई अलख जगा रक्खी है

हर लम्हा है रात का आख़िरी लम्हा
रात के कानों में यही कह कर
आहट सुबह की सजा रक्खी है
बिरहन ने कोई अलख जगा रक्खी है

सोमवार, 15 मार्च 2010

बहुत दिन हुए जिन्दगी से मिले

एक ही तर्ज़ पर दो गीत
1.
बहुत दिन हुए जिन्दगी से मिले
अरमाँ मचल कर पहलू में हिले

बदला है मौसम , दिल भी है सहमा
ले चल किसी अमराई तले

पत्ता न हिलता , गुम है हवा भी
तपती जमीं पर भी पुरवाई चले

झपकता है आँखें , कुम्हलाया शज़र भी
यादों के जब जब लग आता गले
2.
बहुत दिन हुए जिन्दगी से मिले
ज़माना हुआ कुछ अपनी कहे

धड़कन वही , हर गीत में वही
जमीं भी वही, आसमाँ भी वही
लडखडाये जो हम अजनबी से मिले

शिकवे नहीं और गिले भी नहीं
अपनी वफ़ा के सिले भी नहीं
पहचाने नहीं जाते ऐसी बेरुखी से मिले

बहुत दिन हुए जिन्दगी से मिले
ज़माना हुआ कुछ अपनी कहे

शनिवार, 6 मार्च 2010

समझो के शब हुई

आये हैं बीमार बीमार का हाल पूछने
कोई और भी है मेरे जैसा , तसल्ली हुई

आहट हुई राह में देख कर गुलाब को
सेहरे में गुंथता ये , ख़्वाबों से बात हुई

कोई गुजरा था कह देते हैं निशाँ सब कुछ
छेड़े जो तराने तो या खुदा दर्द हुआ या ग़ज़ल हुई

जितना है तेरा मन उदास , दर्द भी है उतना ही
अहसास दूरी का है जितना , उतनी ही तेरी प्यास हुई

कहाँ ढलता है सूरज दिन के ढलने पर
ढल जाती है जब उम्मीद , समझो के शब हुई