गुरुवार, 21 सितंबर 2017

इम्तिहान भी तय है

मान-अपमान भी तय है ,वितृष्णा भरी आँख का सामान भी तय है 
न भटकना ऐ दिल , तुझको सहना है जो वो तूफ़ान भी तय है 

न राहों से गिला , न कश्ती से शिकायत मुझको 
तूफानों के समन्दर में , मेरा इम्तिहान भी तय है 

डूबेंगे कि लग पायेंगे किनारे से हम  
है किसको पता ,मगर अपना अन्जाम भी तय है 

मत बाँध इन किनारों में ऐ खुदा मुझको 
मंजिल-ऐ-मक़्सद के लिये , रूहे-सुकून का अरमान भी तय है 

थोड़ी धूप , थोड़ी छाँव ओढ़ कर घर से निकले 
सफर में जो सामान बटोरा , सर पे बोझ से ढलान भी तय है