बुधवार, 11 नवंबर 2009

हर हिस्से की धूप तय है

मौसम भी क्या शय है
हर हिस्से की धूप तय है

करता है गुलशन जो बेमानी
पकड़ी जाती है नादानी

जीवन की ये कैसी लय है
छाया की प्यासी मय है

अजीब हादसा है बेनामी
मुँह छिपाए है गुमनामी

सरक जाने का भय है
धूप-छाया की कच्ची वय है