रविवार, 28 जून 2009

दुनिया के मेले यूँ गए

दुनिया के मेले यूँ गए हमको तन्हाँ छोड़ कर
भीड़ के इस रेले में , जैसे कोई अपना न था

तन्हाई ले है आई ये हमें किस मोड़ पर
खुली आँखों की इस नीँद में , अब कोई सपना न था

चाँद माथे रख के टिकुली आ गया दहलीज पर
उसके सिवा अब रात का , अपना कोई खुदा न था

या खुदा इम्तिहाँ न ले , तू मेरा इस मोड़ पर
सिलसिला ये रात दिन का , जख्मों से जुदा न था

शुक्रवार, 19 जून 2009

निशानी तेरी मेरे पास

चेहरा चमकता है सिन्दूरी आभा से
ये ही बेहतर निशानी तेरी मेरे पास

दिलों के मिलने के सबब होते हैं थोड़े
लम्बे रास्तों में जगमगाते हैं साथ-साथ

दूरियाँ कितनी भी हों चाहे भले
फासले दिलों के हों तो कर जाते हैं उदास

जगते मद्धिम दीये हों जैसे
तेरे ख्याल की रोशनी के साथ साथ

दिल को पढना हो पढ़ लो इसी रँग को
चेहरे पे छपा होता है अनगिनत रंगों के साथ


शनिवार, 6 जून 2009

इश्क वफ़ा की सीढियाँ चढ़ कर

इश्क वफ़ा की सीढियाँ चढ़ कर
चुन लाये कुछ उजली किरणें
हुस्न के माथे ताज सजे फ़िर
जन्मों का सारा दुःख भूले

रात की चाँदनी वफ़ा के दम पर
दिन का सेहरा इश्क के सर पर
इश्क जो चढ़ता सूरज सा ही
कैसे अपने आप को भूले

वफ़ा की चाहत है सबको ही
चाहत है पर वफ़ा नहीं है
सच्चा है पर सगा नहीं है
अपनी हस्ती आप ही भूले