मंगलवार, 22 जनवरी 2013

रातों की दिया-बाती

जलता हुआ सहरा है , चेहरे पे उदासी है 
आँखों में बदहवासी , जलने की बू आती है 

घड़ी दो घड़ी को , गुलशन का करार देखो 
खिजाँ की कोई रुत भी , पसरी है कि  खाती है 

साबुत न बचा न कोई , चक्की के दो पाटों में 
घर से निकले तो ये दुनिया है , अपना समझे तो ये थाती है 

दिल लगी की बहुत बातें , कह दें तो रुसवाई है 
न बोलें तो बोझ दिल पे , धड़कन की ये पाती है 

ढलता हुआ सूरज है , आँखों में बसी किरणे 
छीने न कोई हमसे , रातों की दिया-बाती हैं