मंगलवार, 23 नवंबर 2010

क्यूँ कोई सुखनवर न हुआ


दिल तो भरा है बहुत
बोला मगर कुछ भी न गया

आहटें सुनीं तो बहुत
मुड़ के देखा न गया

क़ैद में कौन हुआ
फासला जो मिटाया न गया

सूरज तो उगा
मेरे घर में दिन न हुआ

नब्ज तो देखी बहुत उजाले की
रोग का इल्म न हुआ

जिन्दगी दोस्त है तो
क्यूँ कोई सुखनवर न हुआ

वायदा खुद से कर के भूल गए
वो गया तो क्या क्या न हुआ

गुरुवार, 11 नवंबर 2010

तंग थी दिल की गली

कैसे आई ये खिजाँ , दिल्लगी होती रही
तंग थी दिल की गली , रौशनी होती रही

करता है जर्रे को खुदा , इश्क की फितरत रही
दिल से उतरे बिखरे जमीं पर , दिल की लगी रोती रही

है तन्हाई दोनों तरफ , अजब ये किस्मत रही
पास हो या दूर दिलबर , रुसवाई ही होती रही

साथ चलते चार दिन जो , पर दिलों में वहशत रही
लौट कर आए नहीं , जेहन दिन वही ढोती रही

कैसे आई ये खिजाँ , दिल्लगी होती रही
तंग थी दिल की गली , रौशनी होती रही

गुरुवार, 4 नवंबर 2010

मनों अँधेरा खदेड़ते नन्हें से चिराग

चरागों से सीखें जलने का सबक़
दिलों के बुझने का भी तो सबब जानें

ये जल तो लेते हैं एक दूसरे से
अन्धेरा अपनी तली का न पहचानें

परवाह करते हैं सिर्फ अपनी ही नमी की
दूसरा चुक रहा है ये हैं अन्जाने

चरागे-दिल से रौशन होती दुनिया
स्याह रातों का खुदा ही जाने

कितनी आँखों में बुझ बुझ जला है जो
वो आरती का दिया दुनिया माने

मनों अँधेरा खदेड़ते नन्हें से चिराग
दिवाली की रात पूनम सी इतराती जानें