शनिवार, 27 दिसंबर 2008

हवाओं से हवा देती है

जिन्दगी रोज दवा देती है
दुखती रगों को हौले से हिला देती है

तन जाते हैं जब तार मन के
कैसी कैसी तानों को बजा देती है

ज़िन्दगी हो रूठी सजनी जैसे
तिरछी निगाहों से इम्तिहान लेती है

जगते बुझते हौसलों को
हवाओं से हवा देती है

कड़वे घूँटों सी दवाई उसकी
माँ की घुट्टी , घुड़की सा असर देती है

शुक्रवार, 26 दिसंबर 2008

आजाओ मेरे प्रभु जी (गुरु जी )

उतरो मेरे मन में , प्रभु जी
उजली सी किरणें लेकर
तकती हैं मेरी आँखें
भूली हैं सारी राहें
अन्तस में है अँधियारा
दिखता कोई किनारा
जन्मों से बहका तन मन
जलने को है इक उपवन
जाओ मेरे प्रभु जी
ठंडी सी हवाएं लेकर
तेरी ठण्डक देती बाहें
राहत की सारी दवाएँ
महकेगा इक गलियारा
खिल जायेगा इक उजियारा
जिस ओर भी तुम लेजाओ
उंगली अपनी पकड़ाओ

गुरुवार, 25 दिसंबर 2008

बातों में नमी रखना

बातों में नमी रखना
आहों में दुआ रखना
तेरे मेरे चलने को
इक ऐसा जहाँ रखना

जूते तो मखमली हैं
चुभ जायेंगे फ़िर काँटें
जो अपने ही बोए हैं
छाले पड़ जाएँ
चलने को जँमीं रखना

चलना है धरती पर
हो जायेगी मूक जुबाँ
मुस्कानों पे फूल लगा
पँखों में दम भरके
सबकी ही जगह रखना

बच्चों सा निश्छल हो
पुकारों में वो चाहत हो
आसमानों में बैठा जो
उतरने को आतुर हो
अन्तस को सजा रखना

ये कौन झुक -झुक के देखे

ये कौन झुक -झुक के देखे
मन के रंगों की कितनी चमक है
हम तो चलते हैं उसके सहारे
वो जो झुक-झुक के हमको निहारे

झलक तो वो अपनी ही पाता
मेरे संग-संग कदम वो बढ़ाता
थाप उसके ही क़दमों की है
मेरे मन में जो लेती हिलोरें

खुशबू की वो डाली सजाता
बैठ उस पर वो उसको हिलाता
फूल कलियाँ जो उसने बिखेरे
मेरे चेहरे ने वही रंग उकेरे

वो तो बैठा है मन में ही छुप के
रुक रुक के वो करता इशारे
घुँघरू उसके ही खनकाए हैं
माहौल में जो थिरकन उतारें