शनिवार, 27 दिसंबर 2008

हवाओं से हवा देती है

जिन्दगी रोज दवा देती है
दुखती रगों को हौले से हिला देती है

तन जाते हैं जब तार मन के
कैसी कैसी तानों को बजा देती है

ज़िन्दगी हो रूठी सजनी जैसे
तिरछी निगाहों से इम्तिहान लेती है

जगते बुझते हौसलों को
हवाओं से हवा देती है

कड़वे घूँटों सी दवाई उसकी
माँ की घुट्टी , घुड़की सा असर देती है

3 टिप्‍पणियां:

  1. ज़िन्दगी हो रूठी सजनी जैसे



    तिरछी निगाहों से इम्तिहान लेती है

    waah bahut sundar

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  2. First of all Wish u Very Happy New Year...

    Sundar rachana

    Regards

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  3. जिंदगी का अच्छा विश्लेषण किया हैं आपने ,नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये

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मैं भी औरों की तरह , खुशफहमियों का हूँ स्वागत करती
मेरे क़दमों में भी , यही तो हैं हौसलों का दम भरतीं