रविवार, 30 सितंबर 2012

चाह में दम

आह में दम हो तो असर होता है 
सीना हो नम तो ज़िगर होता है 

शिकवे-शिकायत भला किसको नहीं 
बात में दम हो तो असर होता है 

जाने किस दौड़ में हुआ शामिल 
ठहर गया तो शज़र होता है 

वक्त की नज़र है बड़ी टेढ़ी 
चाल में ख़म हो तो किधर होता है 

टूटी कड़ियाँ भी जुड़ जातीं 
चाह में दम हो तो गुज़र होता है 

लाख कह ले के इन्तिज़ार नहीं 
उम्मीद में कोई मगर होता है 

मंगलवार, 18 सितंबर 2012

जश्न के बिना आदमी की गुज़र होती नहीं

अपने लिए तो ग़मों की रात ही जश्न बनी 
जश्न के बिना आदमी की गुज़र होती नहीं 
इसीलिये सजदे में सर अब भी झुका रक्खा है 

गम की आदत है ये दिन रात भुला देता है 
हम नहीं आयेंगे इसके झाँसे में 
चराग दिल का यूँ भी जला रक्खा है 

नाम वाले भी कभी गुमनाम ही हुआ करते हैं 
ज़िन्दगी गुमनामी से भी बढ़ कर है 
ये गुमाँ खुद को पिला रक्खा है 

शबे-गम की क्यूँ सहर होती नहीं 
तारे गिनते गिनते रात भी कटे 
इस उम्मीद पर दिल को बहला रक्खा है

अपने लिए तो ग़मों की रात ही जश्न बनी
जश्न के बिना आदमी की गुज़र होती नहीं
इसीलिये सजदे में सर अब भी झुका रक्खा है

बुधवार, 12 सितंबर 2012

कम कम

मुक्कमिल जहाँ किसे मिलता 
कहीं ज़मीन कम , तो है कहीं आसमान कम 

ये आदमी की मर्ज़ी है , कभी तम्बू सी ले 
कभी दरारें भर ले , ताकि ज़ख्म नजर आयें कम 

सपने के बिना उड़ान होती नहीं 
पँख दिये हैं खुदा ने , फिर भी है मीठी नीँद कम 

खूने-जिगर से सीँच लो चाहे कितना 
पैसे से खरीद लो मगर रिश्ते देंगे सुकून कम 

मजबूरी ,इम्तिहान , हौसला है गर ज़िन्दगी का नाम 
इसीलिये  ज़ायका  नमक नमक है मीठा कम 

बहुत मुश्किल है  बुरे वक्त को गुज़रते हुए देखना 
टूटी हुई रीढ़ के साथ ज़िन्दगी चल पाती है कम 

हम दोनों हाथों से सँभाल लें ऐ ज़िन्दगी तुझे 
पकड़ के रख लें मगर तुम क़ैद हो पाती हो कम कम