गुरुवार, 26 दिसंबर 2013

मरुस्थल में बारिश का बहाना

बुलाना और बात है , निभाना और बात है 
लुभाना और बात है , दिल में बसाना और बात है 

दौड़ती रहती है सारी दुनिया जिस के पीछे 
मरुस्थल में बारिश का बहाना और बात है 

बुझ गया दिल तेरी नजर-अन्दाज़ी से 
तेरी फ़राख़-दिली का फ़साना और बात है 

मजबूर ही होता है आशिक दिल-लगाई में 
पड़ी सिर पर बजाना और बात है 

बुलाना और बात है , निभाना और बात है 
लुभाना और बात है , दिल में बसाना और बात है 


मंगलवार, 12 नवंबर 2013

दिल ही चाहिये मगर

अब के मिलेंगे तुझसे तो ,दिल रख के आयेंगे घर 
दिल काँच का जरुर है , खिलौना नहीं मगर 

अकेले दम पर चलती नहीं दुनिया , हमने देखा है 
मजबूर हैं हम , नुमायश नहीं मगर  

ख़्वाब कितने महँगे हैं , बाज़ार में बिकते नहीं 
नक्दे-जाँ के बदले , दिल ही चाहिये मगर 

सवाल करना मना है , सितम तो देखिये भला 
अपना भी उसे कैसे कहें ,पास होके भी दूर ही खड़ा है मगर 

मंगलवार, 29 अक्तूबर 2013

उतनी ही ज़मीं मिलती

ज़िन्दगी एक तिहाई भर ही मिली 
किसे मिली है ,जो मुझे मिलती 
दो तिहाई की जुगत में 
धरती आसमाँ से मिलती 

बुनता रहता है आदमी सपने
पँखों को दिशा मिलती 
जितनी जीने के लिये जरुरी है 
उतनी ही ज़मीं मिलती 

दाँव पर लगे हैं हम 
खेल में चित या पट मिलती 
मोहरों की बिसात क्या 
शतरंज की बाज़ी नित मिलती 

अपने हिस्से की धूप छाया में  
ज़िन्दगी ही खिली मिलती 
सर पे सूरज की मेहरबानी से 
हौसलों को हवा मिलती 


शनिवार, 5 अक्तूबर 2013

दिन ज़िन्दगानी के चार रे

दिन ज़िन्दगानी के चार रे 
आते न बारम्बार रे 

आज की कदर कर , कल का भरोसा न कोई 
आज पे ही ज़िन्दगी को वार रे 

माँगना न कुछ भी , दिलबर तक है पहुँचने की राह 
आयेगा वो खुद ही तेरे द्वार रे 

पल पल मरना तो , रखता है ज़िन्दगी से कोसों दूर 
ज़िन्दगी के वास्ते कर ले ऐतबार रे 

दिन ज़िन्दगानी के चार रे 
आते न बारम्बार रे 


शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

बहना तू भाई को जाना न भूल

एक डाल के दोनों फूल , बहना तू भाई को जाना न भूल 
आन है तेरी वो,शान है तेरी वो,चुन लेगा वो तेरे पथ के सारे शूल 

१. समता के इस युग ने बेशक,मिटा दिया राखी,भाई-दूज का मोल 
बिन रँगों के जीवन फीका , ये रिश्ते तो हैं अनमोल 

२. दूर हुए तो आँख के तारे , पास हुए तो मिलते न किनारे 
जीवन की ये डगर हमेशा , माँगे मीठे दो ही बोल 

३. उतना ही विस्तार है बाहर , जितनी जड़ में नमी है तेरे 
प्यार की राह तो इकतरफा है , धरती जाने इसका मोल 

एक डाल के दोनों फूल , बहना तू भाई को जाना न भूल 
आन है तेरी वो,शान है तेरी वो,चुन लेगा वो तेरे पथ के सारे शूल 

शुक्रवार, 9 अगस्त 2013

तीज पर एक गीत

चूड़ी-बिन्दी , बिछुए-पायल 
सोलह सिँगार हैं पिय के नाम 

रच गई मेहन्दी और महावर
जन्म जन्म को पिय के नाम 

१. जब से पिया तुम आये जीवन में, 
पहली तीज मुझे भूले न 
बाबुल से मिलने की ख़ुशी और 
बिरहन के मन की वो कसक 
हिरणी सा मन भटकता फिरता ,
ले कर तेरा तेरा नाम 

रच गई मेहन्दी और महावर
जन्म जन्म को पिय के नाम 

२. सावन की फुहारें ले आती हैं ,
हरियाली हर ओर कहीं 
सज-धज कर हम बाट जोहते,
साँसों में है मोगरे की महक 
एक पिया है लाखों में अपना ,
शान बान सब उसके नाम 

रच गई मेहन्दी और महावर
जन्म जन्म को पिय के नाम 

३. बिन्दिया चमके , चूड़ी खनके ,
कँगना बोले , अँगना डोले 
मेघों की घटाएँ ,  जुल्फों की अदाएँ ,
अल्हड़ सी लट है भौचक 
थाप हिया की बोले हर दम, 
ये मौसम है उसके नाम 

रच गई मेहन्दी और महावर
जन्म जन्म को पिय के नाम 

चूड़ी-बिन्दी , बिछुए-पायल 
सोलह सिँगार हैं पिय के नाम 

सोमवार, 22 जुलाई 2013

मगर हारा नहीं था

यूँ ही चलता रहा मैं 
और चारा नहीं था 

अमावस सी राहों पर 
कोई तारा नहीं था 

तन्हा था बहुत मैं 
मगर हारा नहीं था 

लूटा फूलों की बस्ती ने 
काँटों को गवारा नहीं था 

पी गये गम के बादल 
यूँ भी गुजारा नहीं था 

जला देता आँसू मुक्कद्दर 
तो क्या खारा नहीं था 

शिकन ले डूबती अक्सर 
ज़हन का पारा नहीं था 

तमन्नाओं की बस्ती में 
कौन गम का मारा नहीं था 

वो मेरा था तो सही 
मगर सारा नहीं था 




गुरुवार, 27 जून 2013

दिलरुबाई ही लगे

 हम वहाँ हैं जहाँ ,
अपनी खबर भी पराई ही लगे 

चिकने घड़े सा कर दिया 
ज़िन्दगी ये भी रुसवाई ही लगे 

न जाते इधर तो किधर जाते 
हर शय शौदाई ही लगे 

आईना किस को दिखाऊँ 
अपनी फितरत भी हरजाई ही लगे 

यही बदा है , यही सही 
रात के पैर में बिवाई ही लगे 

तेरा मुँह देख के जीते हैं 
आग अपनी लगाई ही लगे 

इश्क में दर-बदर हर कोई 
दाँव पर सारी खुदाई ही लगे 

शोला हो , शबनम हो 
ऐ वक्त , दिलरुबाई ही लगे 

सोमवार, 17 जून 2013

न चेहरे की ढाल हुआ

मेहँदी घुल गई नस-नस में 
फिर भी रँग न गुलाल हुआ 

चढ़ते सूरज को नमन 
ढलता सूरज बेहाल हुआ 

मन की शिकन बोल उठे 
हाय क्या आदमी का हाल हुआ 

लीपा-पोती , रँग-रोगन 
न चेहरे की ढाल हुआ 

चलता-पुर्जा , ढीली-चूलें 
आदमी अब सिर्फ माल हुआ 

सोमवार, 20 मई 2013

हम न भूल पायेंगे

आज के दौर में एक मित्रता और सदभावना भरा दिल ही ढूँढना मुश्किल है ...और जब कभी ऐसा कोई मिल जाता है तो मन कुछ इस तरह गुनगुना उठता है ...

हम न भूल पायेंगे , ये जो तुम चले हो हमारे साथ 
दुनियावी बातों में , रूहानी सी हो जैसे कोई मुलाकात 

वक्त के सितम भूल गये सारे , आँखें मींचीं तो पाया 
के बिछी है , क़दमों तले नर्म रेशम सी करामात 

अजब सी बात है , कभी तो ढूँढे से नहीं मिलती ख़ुशी 
सहरा में चलते हुए , कभी हो जाती है सोंधी सी बरसात 

एक वो लोग उतरे हैं नज्मों में , जो धूप में सुखाते हैं 
दूसरे वो जो , घनी छाँव से दिल को भाते हैं हज़रात 

नज़राने की तरह , रख लो कोई निशानी मेरी भी 
नज़र आऊँगी कभी , मैं भी तुम्हें गाहे-बगाहे यूँ ही बे-बात 

शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

अपने अपने सफ़र की बात है

अपने अपने सफ़र की बात है 
इक दिया है , हवाएँ साथ हैं 

समझे थे जिसे हम आबो-हवा 
सहरा में धूप से क्या निज़ात है 

आँधी-तूफाँ बने सँगी-साथी 
टकराये भी अगर तो बरसात है 

जरुरी है हवा ,काँपती है लौ
ऐ अँधेरे तुझे फिर भी मात है 

लेती है करवट कभी जो तन्हाई  
पास शहनाई दूर वो बारात है 

चलना पड़ता है रुख हवाओं के भी 
आगे चलना ही ज़िन्दगी से मुलाकात है 

बढ़ के चूम लूँ कदम मैं नियति के 
हौसले का जगमगाना भी सौगात है 

कतरा-कतरा जली ,वज़ूद तक है ढली 
शम्मा के सामने बस ढलती हुई रात है 

गीतों-नज़्मों के काँधे रखे सर हुए 
एक दुनिया में अपनी भी औकात है 

अपने अपने सफ़र की बात है 
इक दिया है , हवाएँ साथ हैं 

मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

इक ख़्वाब जरुरी है

खूबसूरती देखने के लिये , वो आँख जरूरी है 
दिल तक उतरने के लिये ,इक आब जरुरी है 

दम भरता है क़दमों में जो 
रँग भरने के लिये , इक ख़्वाब जरुरी है 

जाने कहाँ ले जाये हमें 
मंजिले-मक्सद के लिये ,  दिले-बेताब जरुरी है 

कितने ही मन्जर रोकें क़दमों को 
राहे-वफ़ा के लिये , असबाब जरूरी है 

सवाल-दर-सवाल है ज़िन्दगी गर 
ज़िन्दगी के लिये , ज़िन्दगी सा जवाब जरुरी है 

कहने को चल रहे हैं जुगनुओं के शहर में 
सहर के लिये मगर , आफ़ताब जरुरी है 

गुरुवार, 4 अप्रैल 2013

ये जनम तो तन्हाई के नाम

ज़िन्दगी कुछ यूँ भी गुजरी 
हाथ और प्याले की दूरी मीलों लगी 

उसको चलना ही नहीं था साथ 
बात कहने में इक उम्र लगी 

चाहने भर से क्या होता 
ना-मन्जूरी की ही मुहर लगी 

ये जनम तो तन्हाई के नाम 
समझने में बहुत देर लगी 

हाथ में कुछ भी नहीं है 
माथे पे शिकन ही शिकन लगी 

गर ताजमहल नहीं है किस्मत में मेरी 
खाकसारी भी मुझे न्यारी ही लगी 

सजा ही है ईनाम गर तो 
दाँव पर उम्र सारी ही लगी 


सोमवार, 25 मार्च 2013

ऐसी तलब

तुम हो न सके मेरे 
दुनिया की ख्वाहिशों से मेरा काम क्या 
दिल से दिल को जो मिलाये 
ऐसी तलब का है भला दाम क्या 

हम तो डूबे हैं वहीँ पर 
उथले किनारों पर भला वफ़ा का काम क्या 
चलें तो चलें कैसे 
वो मेंहदी , वो महावर का भला सा नाम क्या 

वक़्त की कोई चाल सूरज के साथ मिली 
भरी दुपहरी में और घाम क्या 
चाहने किस को चले हैं 
इश्क की नगरी में किसी को आराम क्या 

अश्कों से लिखी दास्तान , परवाह किसे है 
इस अहले-सफ़र का हो अन्जाम क्या 

मंगलवार, 12 मार्च 2013

दिन की अहमियत

रात का मुँह देखा तो जानी दिन की अहमियत 
दिल जला कर ही सही , कलम की रौशनाई हुई 

लहरें ही तो होती हैं शान समन्दर की 
ज़िन्दा हैं तो हलचल है , वरना मुर्दों की बस्ती हुई 

रग-रग में समाया है अरमाँ बन कर 
ज़ुदा करते नहीं बनता , खूं जैसी पहचान हुई 

पकड़ लेता है कलम जब-जब समन्दर 
बह जाता है हर कोई , बौनों सी हस्ती हुई 

ज़िन्दगी होती है सहरा के किनारों में भी 
नमी सारी तप कर , सूरज की नजर हुई 

रविवार, 3 मार्च 2013

बुझ-बुझ के जले


वो दिओं सी जलती आँखें , करें इन्तिज़ार किसी का 
कौन जाने बुझ-बुझ के जले , जिया बेकरार किसी का 

हाले-दिल किस को सुनाएँ 
क्यूँ दिल है सोगवार किसी का 

रँग चाहत के भर तो लेते हम भी 
हासिल न हुआ इकरार किसी का 

हाथ लगते ही बहार आ जाती 
तमन्नाओं ये नहीं रोज़गार किसी का 

नरगिसी बातों में फिसल तो जाते हैं 
चमन में क्या है ऐतबार किसी का 

वो दिओं सी जलती आँखें , करें इन्तिज़ार किसी का 
कौन जाने बुझ-बुझ के जला है जिया बेकरार किसी का 

मंगलवार, 19 फ़रवरी 2013

विष्वास को पानी देना

मेरे विष्वास को पानी देना 
अरमान को चुनर धानी देना 

ज़िन्दगी कुछ भी नहीं , मुहब्बत के बिना 
मेरे अलफ़ाज़ को कहानी देना 

जिधर भी देखूँ तुम ही तुम हो 
अहसास को हकीकत ज़मीनी देना 

कहीं न कहीं तो हो तुम 
मेरी आस को ज़िन्दगानी देना 

गुजर गये हैं मौसम कितने ही 
देरी ही सही , बहारों को रवानी देना 

शबे-इन्तिज़ार का कोई तो सिला 
सुबह हर हाल निशानी देना 

बुधवार, 13 फ़रवरी 2013

सत्रह-अठरह का इश्क ,

वैलेन्टाइन-डे की नजर

 सत्रह-अठरह का इश्क , होता है नासमझ 
 रूहानी सी प्यास , दीवानगी की वो हद 

चाँद खिलौने की ज़िद 
डगर से बेखबर , नाजुक कन्धों पे रखना न बोझ रे 


 सत्रह-अठरह का इश्क , होता है नासमझ 
 रूहानी सी प्यास , दीवानगी की वो हद 

कस्तूरी सी महक 
और टीसती कसक , दिल का कोना है बहुत उदास रे 


 सत्रह-अठरह का इश्क , होता है नासमझ 
 रूहानी सी प्यास , दीवानगी की वो हद 

उम्र भर का है रोग 
दुनिया है बेरहम , आतिशे-गुल का है क्या काम रे 


 सत्रह-अठरह का इश्क , होता है नासमझ 
 रूहानी सी प्यास , दीवानगी की वो हद 

कर खुद पर करम 
घर फूँक या दिल फूँक , तमाशे का है क्या अन्जाम रे 


 सत्रह-अठरह का इश्क , होता है नासमझ 
 रूहानी सी प्यास , दीवानगी की वो हद 

तू ऊँचा उठे 
नापे धरती-गगन , क़दमों में बेड़ियों का है क्या काम रे 


 सत्रह-अठरह का इश्क , होता है नासमझ 
 रूहानी सी प्यास , दीवानगी की वो हद 






बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

कहने को ज़िन्दगी है

देखो तो मुहब्बत की हर राह , किस ओर निकलती है 
कहने को ज़िन्दगी है , हर बार ही छलती है 

सूरज के मुहाने से , दिन निकलता है 
चन्दा तेरी गलियों में अश्क की रात भी ढलती है 

मुहब्बत है इबादत, बेशक 
छुप के ज़माने से मगर पलती है 

फिसला है हर कोई यहाँ 
शीशे के घरों में तन्हाई ही पलती है 

हर किसी को तमन्ना है गुलाबों की 
खरोंच काँटों की साथ-साथ मिलती है

देखो तो मुहब्बत की हर राह , किस ओर निकलती है 
कहने को ज़िन्दगी है , हर बार ही छलती है  

बुधवार, 30 जनवरी 2013

सामाँ होता तो

सपना होता तो उड़ान भी होती 
रेला होता तो लगाम भी होती 

इक चुप सी लगी है जाने 
बात होती तो जुबान भी होती 

वक्त के साथ सारे तूफ़ान गये 
ठहरे होते तो थकान भी होती 

क्यूँ आहों को सजाये बैठे हैं 
सामाँ होता तो दुकान भी होती 

बस्ती से ज़ुदा वीरान है मस्ज़िद 
मुल्ला होता तो अज़ान भी होती 

मंगलवार, 22 जनवरी 2013

रातों की दिया-बाती

जलता हुआ सहरा है , चेहरे पे उदासी है 
आँखों में बदहवासी , जलने की बू आती है 

घड़ी दो घड़ी को , गुलशन का करार देखो 
खिजाँ की कोई रुत भी , पसरी है कि  खाती है 

साबुत न बचा न कोई , चक्की के दो पाटों में 
घर से निकले तो ये दुनिया है , अपना समझे तो ये थाती है 

दिल लगी की बहुत बातें , कह दें तो रुसवाई है 
न बोलें तो बोझ दिल पे , धड़कन की ये पाती है 

ढलता हुआ सूरज है , आँखों में बसी किरणे 
छीने न कोई हमसे , रातों की दिया-बाती हैं 

रविवार, 13 जनवरी 2013

हादसे ही ले आये हैं

हादसों की न पूछो 
बचा न कुछ भी , जिस्मों-जाँ पूछो 

वक़्त हुआ है 
किस पे मेहरबाँ पूछो 

टूट गया दिल 
ढह गया मकाँ पूछो 

महकते थे गुल 
बचे हैं क्या निशाँ पूछो 

हादसे ही ले आये हैं 
इस मुकाँ पूछो 

मिट-मिट के हुआ है 
गम जवाँ पूछो 

जज़्बात हैं स्याही के सिवा 
लेखनी की जुबाँ पूछो 

गुरुवार, 3 जनवरी 2013

नया साल आया तो खड़ा है

नया साल आया तो खड़ा है 
उम्मीद जश्न की करता हमसे 
खुशियों पे अपनी पानी पड़ा है  

गुजरे साल में ज़ख़्मी हुए हम 
जार जार रोई मानवता 
काँधे पे अपने , लिए ज़मीर की , लाश खड़ा है 

सूख गये विष्वास के मानी 
मर गया आँख में शर्म का  पानी 
अस्मिता बचाओ , घर में लुटेरा आन खड़ा है 

जननी , भगिनी , भामिनी 
नारी के सम्मान की भाषा 
हाथ में लिए मशाल ' दामिनी ' , हर रिश्ते का पहरेदार खड़ा है 

हर आँख नम है 
हर सीने में कितना गम है 
कैसे करें सत्कार तुम्हारा , गुजरा साल सीने में अड़ा है 


नया साल आया तो खड़ा है 
उम्मीद जश्न की करता हमसे 
खुशियों पे अपनी पानी पड़ा है