मंगलवार, 6 मई 2014

पढ़े , तेरे खत फिर से

बरसों बाद पढ़े , तेरे खत फिर से 
वही मौसम गुजरा है , इक बार इधर फिर से 

वो जो धूप जमी थी, निगाहों के आस-पास 
तेरे चेहरे पे झिलमिलाती हुई , दिखी है इधर फिर से 

छोड़ आई थी जो पीछे , वो अल्हड़ सी जवानी 
जागी हैं वही नादानियाँ , देखो तो इधर फिर से 

रस्मों के सहारे से , महबूब बने तुम 
मेरी दुनिया दिल से , चली है इधर फिर से 

कौन जाने किसके खतों का , अन्जाम हो क्या 
दफ़न हों सीने में या जी उट्ठे ,लम्हा-लम्हा इधर फिर से 

दुनिया से छुपा कर , लिक्खा था जिन्हें 
फूल बन कर खिले हैं वही , महके हैं इधर फिर से