सोमवार, 20 जून 2011

जलना शम्मा को अपने ही दम पड़े

क्षमा जी की नजर


यूँ न रूठो खुद से इतना ,
के मनाने ज़िन्दगी भी आये तो कम पड़े
आयेंगे हर मोड़ पे इम्तिहाँ लेने को गम बड़े

ज़िन्दगी के ख़जाने में साँसें गिनती की
कितनी पास हैं कज़ा के ,कितनी दूर हम खड़े

ज़िन्दगी अमानत है खुदा की
गौर से देखो कितने अक्सों में हम जड़े

ये नहीं है के छाया कभी देखी न हो
मन ही पागल है के इसके हिस्से ही गम पड़े

चलती रहती है यूँ ही सारी दुनिया
सो गए हम तो क्या सूरज भी थम पड़े

एक धागे का साथ जरुरी है
जलना शम्मा को अपने ही दम पड़े

उठो , अहतराम कर लो ज़िन्दगी का
जश्न से गुजरे तो भूल जायेंगे ख़म बड़े

मंगलवार, 14 जून 2011

सब फ़ानी ही लगे

जिन्दगी भी फ़ानी ही लगे
बारूद के ढेर पर कोई कहानी ही लगे

फूलों को बोना भी जरुर
काँटों में इनकी महक ज़िन्दगानी ही लगे

तोड़ कर तारे तो मैं ले आऊँ
जो मेरे हाथ कोई मेहरबानी ही लगे

न आए कोई तो क्या कीजे
दिल जलाना भी नादानी ही लगे

वक्त के हाथ हैं तुरुप के मोहरे
पत्तों की बाज़ी भी आसमानी ही लगे

भस्म कर देती है चिन्गारी भी
राख के ढेर तले आग पुरानी ही लगे

छाछ भी फूँक के ही पीता है
जले दूध के को सब फ़ानी ही लगे