सोमवार, 20 जून 2011

जलना शम्मा को अपने ही दम पड़े

क्षमा जी की नजर


यूँ न रूठो खुद से इतना ,
के मनाने ज़िन्दगी भी आये तो कम पड़े
आयेंगे हर मोड़ पे इम्तिहाँ लेने को गम बड़े

ज़िन्दगी के ख़जाने में साँसें गिनती की
कितनी पास हैं कज़ा के ,कितनी दूर हम खड़े

ज़िन्दगी अमानत है खुदा की
गौर से देखो कितने अक्सों में हम जड़े

ये नहीं है के छाया कभी देखी न हो
मन ही पागल है के इसके हिस्से ही गम पड़े

चलती रहती है यूँ ही सारी दुनिया
सो गए हम तो क्या सूरज भी थम पड़े

एक धागे का साथ जरुरी है
जलना शम्मा को अपने ही दम पड़े

उठो , अहतराम कर लो ज़िन्दगी का
जश्न से गुजरे तो भूल जायेंगे ख़म बड़े

16 टिप्‍पणियां:

vandana gupta ने कहा…

एक धागे का साथ जरुरी है
जलना शम्मा को अपने ही दम पड़े

बिल्कुल सही कहा…………शानदार गज़ल्।

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरत और प्रेरणादायक गज़ल

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आज आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


मैं समय हूँ ...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .

kshama ने कहा…

चलती रहती है यूँ ही सारी दुनिया
सो गए हम तो क्या सूरज भी थम पड़े
Bilkul sahee kaha Shardaji aapne! Aapne itni sudar rachana mujhe nazar kee hai....mai bhav vibhor ho uthee hun...bahut bahut shukriya!

devendra gautam ने कहा…

चलती रहती है यूँ ही सारी दुनिया
सो गए हम तो क्या सूरज भी थम पड़े
--wah!..bahut gahri baat kahi hai aapne

Alpana Verma ने कहा…

चलती रहती है यूँ ही सारी दुनिया
सो गए हम तो क्या सूरज भी थम पड़े
-बहुत खूब! ग़ज़ल अच्छी है ..यह शेर ख़ास लगा.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

"चलती रहती है यूँ ही सारी दुनिया
सो गए हम तो क्या सूरज भी थम पड़े"
उम्दा पोस्ट.... सादर...

निवेदिता श्रीवास्तव ने कहा…

निहायत उम्दा ज़जबात ........

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

एक धागे का साथ जरुरी है
जलना शम्मा को अपने ही दम पड़े
Behtreen panktiyan

दिगम्बर नासवा ने कहा…

एक धागे का साथ जरुरी है
जलना शम्मा को अपने ही दम पड़े ...

बहुत खूब .. और इतना सच .. शम्मा तो अपने दम पर ही जलती है ...

Sushant Jain ने कहा…

Bahut khoob ...

रचना दीक्षित ने कहा…

वाह!!!!! क्या बात है. बहुत खूब कहा है.हर शेर लाजवाब

निर्मला कपिला ने कहा…

पहली तीन पँक्तियाँ तो लाजवाब हैं सुन्दर रचना। धन्यवाद।

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा!!!

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

ये नहीं है के छाया कभी देखी न हो
मन ही पागल है के इसके हिस्से ही गम पड़े

क्या बात है, सुंदर रचना

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

चलती रहती है यूँ ही सारी दुनिया
सो गए हम तो क्या सूरज भी थम पड़े

sach me.........