सोमवार, 22 जुलाई 2013

मगर हारा नहीं था

यूँ ही चलता रहा मैं 
और चारा नहीं था 

अमावस सी राहों पर 
कोई तारा नहीं था 

तन्हा था बहुत मैं 
मगर हारा नहीं था 

लूटा फूलों की बस्ती ने 
काँटों को गवारा नहीं था 

पी गये गम के बादल 
यूँ भी गुजारा नहीं था 

जला देता आँसू मुक्कद्दर 
तो क्या खारा नहीं था 

शिकन ले डूबती अक्सर 
ज़हन का पारा नहीं था 

तमन्नाओं की बस्ती में 
कौन गम का मारा नहीं था 

वो मेरा था तो सही 
मगर सारा नहीं था