रविवार, 19 जुलाई 2015

हम तेरे शहर से चले जायेंगे

इतने साल इस शहर में बिता कर अब जाने का वक्त हो चला है , सँगी-साथियों से बिछड़ने का वक़्त …

हम तेरे शहर से चले जायेंगे 
कितना भी पुकारोगे , नजर न आयेंगे 

अभी तो वक़्त है , मिल लो हमसे दो-चार बार और 
फिर ये चौबारे मेरे , मुँह चिढ़ायेंगे 

भूल जाना जो कभी , दिल दुखाया हो मैंने तेरा 
इतने अपने हो , गैर की तरह क्यों दिल दुखायेंगे 

धूप ही धूप रही , सफर में अपने बेशक 
छाया तेरी भी कभी , हम न भूल पायेंगे 

ये दुनिया आबाद रही हमेशा , दोस्ती के रँगों में 
महफिले-यारों की सँगत , कहो किधर से लायेंगे