बुधवार, 17 जून 2015

तू जिसे ढूँढ रहा है

तू जिसे ढूँढ रहा है , वो तो इश्क है हक़ीकी 
दुनिया की महफ़िलों में , मिलता है वो रिवाजी 

ज़माने की आँधियों में , रहना है तुझे साबुत 
मिले न भले कुछ भी , हर हाल में हो राजी 

ज़िन्दगी का है ये मेला , चाहे तो चल अकेला 
चाहे तो सजदा कर ले , चाहे तो रख नाराज़ी 

मिलती नहीं है दुनिया तो , लगती है भले सोना 
मिल जाये तो माटी है , प्राणों की लगे बाज़ी 

चल-चल के जो तू हारे , चारों तरफ निहारे 
रूहों का शहर है ये , रिश्तों की है मोहताजी 

माने तो दुनिया सहरा , माने तो दुनिया महफ़िल 
फ़ानी है सारी दुनिया , कोरी है ये लफ़्फ़ाज़ी 

सच्चा ही तू रह खुद से , इतना भी तो है काफ़ी 
आयेगा सब ही आगे , छोड़ेगा कहाँ माज़ी 

बुलबुलों सा फ़ना होता , ज़द्दो-जहद की खातिर 
सागर से कब मिलेगा , नजरों में रख अजीजी