सोमवार, 31 मार्च 2014

जी भर कर तुम जल कर देखो

एक आस का दिया जला कर , कितने फूल खिलाये हमने 
मैं ही नहीं हूँ कायल इसकी , दुनिया भर से जा कर पूछो 

दीवाली सी जगमग होती , तम से भरी रात भी देखो 
बाती सँग तेल भी सार्थक होता , जी भर कर तुम जल कर देखो 

और चमन में क्या करना है , सूरज की अपनी महिमा है 
रँग जाते हैं उस रँग में , जिसके सँग तुम चल कर देखो 

सदियों से होता आया है , अक्सर दुख का खेल यहाँ 
अन्तर्मन में न उतरे जो , ऐसा सौदा ले कर देखो 

खुशबू भला कहाँ छुपती है , आँखें कर देती हैं चुगली 
इन्द्रधनुष सा खिल उठता है , फलक की सीढ़ी चढ़ कर देखो 

शनिवार, 22 मार्च 2014

सब्र का प्याला

 दर्द के घूँट और सब्र का प्याला 
साकी ने मेरा इम्तिहान ले डाला 

अपने हाथों से जो देता है रहमत 
उन्हीं हाथों से कहर दे डाला 

यकीन अब भी है , तेरे इम्तिहाँ ने 
इक नया मुकाम दे डाला 

दूर से माप रहा तू हौसला मेरा 
लो, मैंने भी तुझे पढ़ डाला 

इम्तिहाँ हैं तालीम का हिस्सा 
वक्त ने फैसला सुना डाला 

कभी तेरी ये सदा , कभी तेरी ये दवा 
पीना हमको है , शिकन न डाला 

साथी भी है , समाँ भी , सामाँ भी 
रूठी किस्मत की नजर कर डाला